विवेक शर्मा
रांची: आपने एक से एक ऊंचे पहाड़ देखे है. जहां पर लोग घूमने के लिए जाते है. वहीं एडवेंचर स्पोर्ट्स और पिकनिक के लिए भी पहाड़ डेस्टिनेशन बन गया है. लेकिन राजधानी से कुछ दूरी पर एक पहाड़ है जिसे गिराने पर 121 करोड़ रुपए मिलेंगे. ये पहाड़ कुछ और नहीं बल्कि झिरी में कचरे का पहाड़ है. जहां नगर निगम पूरे शहर का कचरा कलेक्ट कर शहर से 15 किलोमीटर दूर झिरी में डंप कर रहा है. सालों से डंपिंग की वजह से अब वहां कचरे का पहाड़ खड़ा हो गया है. इस पहाड़ को खत्म करने के लिए नगर विकास विभाग और रांची नगर निगम एजेंसी ढूंढ रहा है. लेकिन तीसरी बार टेंडर निकालने के बावजूद कोई एजेंसी कचरे का पहाड़ गिराने में इंटरेस्ट नहीं दिखा रही है. अब नगर निगम ने एकबार फिर से एजेंसी की तलाश में टेंडर निकाला है. बता दें कि इस काम के लिए सरकार ने 121 करोड़ रुपए खर्च करने की स्वीकृति दी है. जिसके तहत कचरे का डिस्पोजल करते हुए पहाड़ को खत्म किया जाएगा.
13 साल में 3 एजेंसी बाहर
नगर निगम लोगों के घरों से कचरा कलेक्ट करने और उसके डिस्पोजल के लिए 20 सालों से प्रयास कर रहा है. इस दौरान पहले एनजीओ के माध्यम से सफाई कराई गई. इसके बाद नगर निगम ने अपने हाथों में सफाई की कमान ले ली. इस बीच सफाई के लिए 13 सालों में तीन एजेंसियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. वर्तमान में नगर निगम शहर की सफाई कर रहा है. वहीं कलेक्शन के लिए एकबार फिर से एजेंसी की तलाश की जा रही है. झिरी में खड़े कचरे के पहाड़ के डिस्पोजल के दावे पिछले 12 साल से किये जा रहे हैं. सबसे पहले 2010-11 में एटूजेड कंपनी ने इस कचरे का डिस्पोजल कर टाइल्स बनाने की बात कही थी. कंपनी को दो साल काम करने के बाद लापरवाही देखते हुए टर्मिनेट कर दिया गया. 2014-15 में एसेल इंफ्रा ने काम लिया. कंपनी ने इस कचरे से बिजली बनाने की बात कही. डेढ़ साल में इस कंपनी को भी हटा दिया गया. फिर सीडीसी कंपनी को भी नगर निगम ने डेढ़ साल में चलता कर दिया.
बायोरेमेडियेशन से डिस्पोजल
झिरी में डंप किये गये कचरे के डिस्पोजल के लिए प्राइवेट एजेंसी के सेलेक्शन को लेकर तैयारी पहले से हो रही है, इस बार कचरे का डिस्पोजल बायोरेमेडियेशन/बायो माइनिंग तरीके से किया जाना है. इसमें 136 करोड़ रुपये खर्च का डीपीआर तैयार कर केंद्र सरकार को भेजा गया था. एजेंसी को कचरे के डिस्पोजल के लिए झिरी में ही प्लांट लगाना है. कचरे के पहाड़ का 80 प्रतिशत हिस्सा पूरी तरह से खत्म करना है. वहीं 20 प्रतिशत अवशेष का इस्तेमाल खाली जगहों पर लैंड फीलिंग के लिए इस्तेमाल करना है.