Joharlive Desk
नई दिल्ली। चीन की दवाओं और चिकित्सा उपकरणों पर दुनियाभर के देशों का भरोसा कम हो रहा है। इसका फायदा उठाने के लिए सरकार बंद पड़ी सक्रिया फार्मा घटक (एपीआई) इकाइयों को दोबारा शुरू करने की तैयारी में है। इन इकाइयों के लिए विशेष फंड बनाने के साथ कर्ज भुगतान में रियायत देने की भी योजना बनाई है।
वाणिज्य मंत्रालय के अधीन आने वाले दवा निर्यात संवर्द्धन परिषद के चेयरमैन दिनेश दुआ का कहना है कि भारत में प्रतिभाओं, उद्यमशीलता की भावना, प्रौद्योगिकी, स्वचालन और विनिर्माण सहित एपीआई के अन्य अवयवों की कमी नहीं है। बंद पड़ी इकाइयों को राजकोषीय मदद के साथ पूंजीगत सब्सिडी, दो साल तक ईएमआई में छूट और तीन साल तक बिना ब्याज कर्ज देने से एपीआई निर्माण के लिए प्रेरित किया जा सकता है।
उन्होंने कहा, सरकार पहले ही सभी 53 केएसएम (प्रमुख शुरुआती सामग्री, जो एपीआई के लिए ब्लॉक का निर्माण करते हैं) और एपीआई के लिए प्रोत्साहन देने की घोषणा कर चुकी है, जिनके लिए हम आयात पर निर्भर हैं। इसके तहत ड्रग पार्क बनाने के लिए सरकार ने 10 हजार करोड़ के फंड की घोषणा की थी। हालांकि, उद्योग जगत के विशेषज्ञों का कहना है कि तत्काल लाभ के लिए बंद इकाइयों को शुरू करना ही एकमात्र विकल्प है।
एपीआई का सबसे बड़ा निर्यातक चीन भारत ही नहीं दुनियाभर के बाजारों पर कब्जा जमाए बैठा है। दुआ ने बताया कि विश्व के 55 फीसदी एपीआई बाजार पर चीन काबिज है, जबकि भारत 58 तरह की एपीआई के लिए चीन पर निर्भर है। इन दवाओं का 70 फीसदी हिस्सा अकेले चीन से आयात किया जाता है। इतना ही नहीं, देश की 373 जरूरी दवाओं की सूची में 200 एपीआई की श्रेणी में आती हैं।
देश की सबसे पुरानी सरकारी दवा कंपनी हिंदुस्तान एंटीबायोटिक्स लिमिटेड (एचएएल) को पुनर्जीवित करने पर भी विचार चल रहा है। कंपनी ने गत फरवरी में सरकार को प्रस्ताव दिया था कि अगर उसे अपग्रेड करने को वित्तीय सहायता मिलती है तो वह देश में ऐसी दवाओं की जरूरत का 50% अकेले बना सकती है। अगर सरकार की योजना सफल रहती है तो भारतीय दवा निर्माताओं को निर्यात से 23 हजार करोड़ की कमाई हो सकती है।