रांची : आज 10 अक्टूबर को पूरा विश्व वर्ल्ड मेंटल हेल्थ डे मना रहा है. वहीं, इस बार का थीम है ‘मेंटल हेल्थ इज ए यूनिवर्सल ह्यूमन राइट’. इसी के तहत बच्चों से लेकर बुजुर्गों के मेंटल हेल्थ को लेकर अवेयर किया जा रहा है, जिससे कि लोगों का मेंटल हेल्थ दुरुस्त रहे. यह कहना है क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट सह डायरेक्टर ब्रेन डायनेमिक्स डॉ भाग्यश्री कर का. उन्होंने कहा कि मोबाइल एडिक्शन ने लोगों की सेहत के साथ ही उनकी राइटिंग स्किल को भी प्रभावित कर दिया है. इतना ही नहीं, बच्चे पूरी तरह लिखना तो भूल ही रहे हैं साथ ही साथ इसका सीधा असर उनकी पढ़ाई पर भी पड़ रहा है. इसे लेकर पैरेंट्स और टीचर्स भी चिंतित हैं. वहीं, बच्चे भी वर्कशॉप में इस समस्या का समाधान पूछ रहे हैं कि आखिर इससे बाहर कैसे निकलें.
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डॉ भाग्यश्री कर ने बताया कि मोबाइल आज हर किसी की जरूरत बन गया है. बच्चों से लेकर बड़े सबके हाथों में मोबाइल है. रील्स बनाने से लेकर गेम्स खेलना भी एडिक्शन की तरह हावी हो चुका है. इस चक्कर में देर रात तक सभी जाग रहे हैं. जब तक मोबाइल हाथ में है तब तक लोगों को नींद भी नहीं आ रही है. आज स्थिति यह हो गई है कि नींद का पैटर्न बदल गया है. देर से सोना और नींद पूरी न होना जैसी समस्याएं लोगों की याद्दाश्त पर भी असर डाल रही है.
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उन्होंने कहा कि स्कूल और कॉलेज गोइंग स्टूडेंट्स की राइटिंग की आदत छूट रही है. जिसका असर एकेडमिक्स पर पड़ रहा है. चाहकर भी वे पूरा नोट्स प्रॉपर तरीके से नहीं बना पा रहे हैं. चूंकि मोबाइल में हर चीज शॉर्ट में लिखने की आदत हो गई है. इस वजह से वे अपने नोट्स भी शॉर्ट में ही बना रहे हैं. इतना ही नहीं, अपनी आदतों की वजह से एग्जाम में भी क्वेश्चन के आंसर में कई जगहों पर पूरा लिखने के बजाय शॉर्ट में ही लिखकर आ जा रहे हैं, जो कि फिलहाल शुरुआती लेवल पर है. लेकिन जल्द ही इसके समाधान को लेकर शुरुआत नहीं की गई तो स्थिति भयावह होगी.
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बच्चों से लेकर युवा रील्स से प्रभावित हो रहे हैं. इसका असर उनके दिमाग पर ऐसा पड़ा है कि छोटी-छोटी बातों में सुसाइड जैसे कदम उठा ले रहे हैं. डांट-फटकार से भी वे अपनी जान की फिक्र नहीं कर रहे हैं. ऐसे में अब समय आ गया है कि हर किसी को मेंटल हेल्थ को लेकर अवेयर किया जा सके. इससे हम एक स्वस्थ समाज का निर्माण कर सकते हैं.
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