रांचीः क्या पीएम मोदी का प्लान फिक्स था? क्या पीएम मोदी ने जीएसटी, आर्टिकल 370 और तीन तलाक के बाद महिला आरक्षण बिल पर मुहर लगाने की रणनीति पहले ही तय कर ली थी. संसद के पटल पर लाने के एक दिन पहले कैबिनेट से महिला आरक्षण बिल की स्वीकृति देना यह दिखाता है कि मोदी सरकार के इरादे का अन्दाज लगाना विपक्ष के वश में भी नहीं है. महिला आरक्षण बिल को लेकर सियासी मायने बहुत अलग हैं, जिसे समझने के लिये आंकड़ों की पुरानी कथा को याद करना जरूरी है. नारी शक्ति वंदन अधिनियम की बुनियाद में क्या वोट की राजनीति छिपी हुई है? ऐसे कई सवाल हैं जिनका जवाब आना बाकी हैं.
15 सालों के लिये महिला आरक्षण बिल को पेश किया गया है. वर्तमान लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या 78 है. जाहिर है इस बिल के पास हो जाने के बाद देश की लोकसभा सीटों में 181 महिलाओं की भागीदारी हो जायेगी. साथ ही देश के कई विधानसभा में भी महिलाओं के अधिकार की वकालत काफी मुखर होकर होने लगेगी. आपको याद करना चाहिये कि उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में भाजपा 56 प्रतिशत महिलाओं के वोटों की वजह से जीती थी जबकि समाजवादी पार्टी को 35 प्रतिशत महिलाओं ने वोट दिये थे. मतलब साफ है कि पीएम मोदी इस बात को जानते हैं कि महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने से भाजपा को सीधा फायदा होने वाला है चूंकि उन्होंने तीन तलाक जैसे कानून को रद्द कर मुस्लिम महिलाओं का भरोसा जीतने में कामयाबी हासिल की है. उसी का परिणाम था कि यूपी में भाजपा की सरकार तमाम विरोध के बाद भी जीती. उत्तर प्रदेश में भाजपा को ऐसी सीटों पर जीत हासिल हुई थी जो मुस्लिम बहुल थी लेकिन वहां महिला वोटरों ने जमकर भाजपा के पक्ष में मतदान किया.
नारी शक्ति वंदना अधिनियम बिल के मायने सीधे तौर पर आधी आबादी पर राजनीतिक दांव से जुड़ा हुआ है, जिसके बारे में भाजपा बेहतर तरीके से जानती है. ऐसा नहीं है कि यह बिल पहली बार सदन के पटल पर लाया गया है. इसके पहले भी आठ बार प्रयास हुए हैं लेकिन किसी भी सरकार को सफलता अब तक नहीं मिली. अगर मोदी सरकार इस बिल को दोनों सदनों से पास कराने में कामयाब हो जाती है तो यह मान लीजिये कि आने वाले लोकसभा चुनावों में भाजपा के चुनावी गणित के आगे तमाम राजनीतिक पार्टियां फेल होती नजर आयेंगी.
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