Joharlive Team
राक्षसों का वध करने के बाद भी जब महाकाली का क्रोध कम नहीं हुआ तब भगवान शिव स्वयं उनके चरणों में लेट गए। भगवान शिव के शरीर स्पर्श मात्र से ही देवी महाकाली का क्रोध समाप्त हो गया। इसी की याद में उनके शांत रूप लक्ष्मी की पूजा की शुरुआत हुई जबकि इसी रात इनके रौद्ररूप काली की पूजा का विधान भी कुछ राज्यों में है। कहते हैं काली पूजा करने से संकटों का तुरंत ही समाधान हो जाता है।
कल रात्रि में होगा कालीपूजा
अमावश्या तिथि तंत्र की तिथि माना जाता है। और काली माता तंत्र की देवी है। कार्तिक अमावस्या को माता काली और तंत्र दोनो का रात्रि है। इससलिये आज सिद्धि और तंत्र की प्राप्ति के लिये माता का विशेष पूजा होता है।
दुष्टों और पापियों का संहार करने के लिए माता दुर्गा ने ही मां काली के रूप में अवतार लिया था। माना जाता है कि श्रद्धापूर्वक मां काली के पूजन से जीवन के सभी दुखों का चमत्कारिक रूप से अंत हो जाता है। शत्रुओं का नाश हो जाता है। कहा जाता है कि मां काली का पूजन करने से जन्मकुंडली में बैठे राहू और केतु भी शांत हो जाते हैं। माता काली की पूजा या भक्ति करने वालों को माता सभी तरह से निर्भीक और सुखी बना देती हैं। वे अपने भक्तों को सभी तरह की परेशानियों से बचाती हैं।
दो तरीके से मां काली की पूजा की जाती है, एक सामान्य और दूसरी तंत्र पूजा। सामान्य पूजा कोई भी कर सकता है। माता काली की सामान्य पूजा में विशेष रूप से 108 गुड़हल के फूल, 108 बेलपत्र एवं माला, 108 मिट्टी के दीपक और 108 दुर्वा चढ़ाने की परंपरा है। साथ ही मौसमी फल, मिठाई, खिचड़ी, खीर, तली हुई सब्जी तथा अन्य व्यंजनों का भी भोग माता को चढ़ाया जाता है। पूजा की इस विधि में सुबह से उपवास रखकर रात्रि में भोग, होम-हवन व पुष्पांजलि आदि का समावेश होता है।