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झारखंड : कौन हैं टाना भगत, आजादी के 73 साल बाद भी जारी है इनका आंदोलन

Joharlive Team

  • आजादी के आंदोलन में शामिल होने और लगान नहीं देने पर अंग्रेजी शासन ने जमीन छीन कर दी थी नीलाम

रांची। आजादी के 73 साल गुजर जाने के बाद भी महात्मा गांधी के पदचिह्नों पर चलने वाले झारखंड के लगभग 80 हजार टाना भगतों के लिए हालात ज्यादा नहीं बदले हैं। अपने हक और जरूरी मांग के लेकर इनका आंदोलन लगातार जारी है। मूल रूप से उरांव जनजाति से आने वाले इन टाना भगत समुदाय में बहुत सारे ऐसे परिवार हैं, जिनकी जमीनें अंग्रेजी हुकूमत ने नीलाम कर दी थी। उन्हें इस बात की उम्मीद थी कि आजादी के बाद उन्हें उनका हक मिलेगा, लेकिन विभिन्न तकनीकी अड़चनों की वजह से उनको अब तक अधिकार नहीं मिल पाया है। आइये जानते हैं टाना भगत कौन हैं…

1913 से 1942 तक आजादी की लड़ाई में लिया हिस्सा

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से प्रभावित होकर टाना भगत आजादी की लड़ाई में कूद पड़े थे। 1913 से लेकर 1942 तक ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन के दौरान टाना भगत ने अंग्रेजी शासन के खिलाफ जमकर लड़ाई लड़ी। उन्होंने जमीन का लगान देने से इनकार कर दिया, जिससे नाराज तत्कालीन ब्रिटिश हुकूमत ने इनकी जमीन छीन कर नीलाम कर दी थी। आजादी के बाद 1948 में देश की आजाद सरकार ने ‘टाना भगत रैयत एग्रिकल्चरल लैंड रेस्टोरेशन एक्ट’ पारित किया। यह अधिनियम अपने आप में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ टाना भगत के आंदोलन की व्यापकता और उनकी कुर्बानी का आईना है। इस अधिनियम में 1913 से 1942 तक की अवधि में अंग्रेज सरकार की ओर से टाना भगत की नीलाम की गई जमीन को वापस दिलाने का प्रावधान किया गया।

हर घर में होती है तिरंगे की पूजा

पूरे भारत में शायद टाना भगत ही ऐसा समुदाय है, जिसके सदस्यों का दिन शुरू होता है तिरंगे की पूजा के साथ। टाना भगत समुदाय के हर घर में तिरंगा उसी तरह से लगा होता है, जिस तरह से साधारण हिन्दू परिवार में तुलसी का पौधा होता है। प्रतिदिन टाना भगत तिरंगे की पूजा के बाद ही अपनी दिनचर्या की शुरुआत करते हैं। टाना भगत अपने हाथों में अक्सर तिरंगा झंडा के साथ विभिन्न कार्यक्रमों में घूमते आसानी से दिख जाएंगे। वहीं इनके हाथों में घंटी और झोले में शंख होता है। घंटी और शंख अंग्रेजी शासन के खिलाफ आजादी के लिए शुरू किए गए शंखनाद का प्रतीक माना जाता है।

जमीन का लगान देने से किया इनकार

1924 में 24 वर्षीय जतरा टाना भगत के नेतृत्व में उरांव जनजाति के लोगों ने संकल्प लिया कि वे जमींदारों के खेत में मजदूरी नहीं करेंगे। अंग्रेजी हुकूमत को लगान नहीं देंगे। स्वतंत्रता संग्राम में असहयोग आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने का खामियाजा उन्हें भोगना पड़ा। अंग्रेजी शासन ने लगान नहीं देने के कारण उनकी जमीन को नीलाम कर दिया। लेकिन इन टाना भगत के इरादों में कोई बदलाव नहीं आया। उन्हें विश्वास था उनकी कुर्बानी का फल जरूर मिलेगा और उनकी जमीन वापस हो जाएगी। भारत को आजादी मिल गई, सभी आजाद भारत में सांस ले रहे हैं, लेकिन टाना भगत का सपना अब भी अधूरा है।

जतरा टाना भगत के नेतृत्व में चला था लंबा आंदोलन

जतरा उरांव के नेतृत्व में 1913-14 में टाना भगत समुदाय का आंदोलन शुरू हुआ। शुरू में टाना भगत समुदाय ने आदिवासी समाज में पशु- बलि, मांस भक्षण, जीव हत्या, शराब सेवन आदि को छोड़ कर सात्विक जीवन यापन करने का अभियान छेड़ा। साथ ही भूत-प्रेत जैसे अंधविश्वासों के खिलाफ सात्विक और निडर जीवन की नई शैली का सूत्रपात किया। उस शैली से शोषण और अन्याय के खिलाफ लड़ने की नई दृष्टि आदिवासी समाज में पनपने लगी। तब आंदोलन का राजनीतिक लक्ष्य स्पष्ट होने लगा। सात्विक जीवन के लिए एक नए पंथ पर चलने वाले हजारों आदिवासी जैसे सामंतों, साहुकारों और ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ संगठित ‘अहिंसक सेना’ के सदस्य हो गए।

जतरा भगत के नेतृत्व में ऐलान हुआ- माल गुजारी नहीं देंगे, बेगारी नहीं करेंगे और टैक्स नहीं देंगे। उसके साथ ही जतरा भगत का विद्रोह ‘टाना भगत आंदोलन’ के रूप में सुर्खियों में आ गया। आंदोलन के मूल चरित्र और नीति को समझने में असमर्थ अंग्रेज सरकार ने घबराकर जतरा उरांव को 1914 में गिरफ्तार कर लिया। उन्हें डेढ़ साल की सजा दी गयी। जेल से छूटने के बाद जतरा उरांव का अचानक देहांत हो गया लेकिन टाना भगत आंदोलन अपनी अहिंसक नीति के कारण निरंतर विकसित होते हुए महात्मा गांधी के स्वदेशी आंदोलन से जुड़ गया। यह तो कांग्रेस के इतिहास में भी दर्ज है कि 1922 में कांग्रेस के गया सम्मेलन और 1923 के नागपुर सत्याग्रह में बड़ी संख्या में टाना भगत शामिल हुए थे। 1940 में रामगढ़ कांग्रेस में टाना भगत ने महात्मा गांधी को 400 रु. की थैली दी थी। देश को आजादी भी मिल गयी, लेकिन टाना भगत समुदाय का आंदोलन अब भी जारी है।

करीब 2400 से अधिक एकड़ अब तक नहीं मिली वापस

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, टाना भगतों की लगभग 2486 एकड़ जमीन आज भी उन्हें पूरी तरह से वापस नहीं मिली। इस संबंध में 700 से अधिक मामले राज्य की विभिन्न अदालतों में चल रहे हैं। इनकी जमीन वापसी को लेकर पहले भी कई सरकार की ओर से कई आश्वासन दिए गए, लेकिन विभिन्न तकनीकी अड़चनों की वजह से टाना भगतों को अब तक उनका अधिकार नहीं मिल पाया है।

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