Joharlive Team
दुमका। झारखंड के दुमका जिले का सरैयाहाट प्रखंड क्षेत्र में एक ऐसा गांव है जो तीन दिशाओं से नदी से घिरा है। इस वजह से गांव के बच्चे बच्चियों की शादी में परेशानी होती है। रिश्तेदार गांव आने से हिचकते हैं। यहां तक कि अगर गांव में कोई व्यक्ति बीमार हो जाए तो उसे बाहर ले जाने के लिए भारी मुश्किलों से जुझना पड़ता है। झारखंड और बिहार की सीमा पर स्थित सरैयाहाट प्रखंड क्षेत्र में फिटकोरिया और लालपुर गांव है, जहां आजादी के 70 वर्षों तक महज एक किलोमीटर सड़क का निर्माण सम्भव नहीं हो पाया है।
झारखंड में जुझारू जनप्रतिनिधि के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले भाजपा से राजनीतिक यात्रा शुरू कर झाविमो होते हुए हाल में कांग्रेस में शामिल होने वाले प्रदीप यादव लगभग दो दशक से इस क्षेत्र के विधायक हैं। गांव के लोग कई बार क्षेत्र के जुझारू विधायक स्थानीय जनप्रतिनिधियों के साथ शासन-प्रशासन के पास एक अदद सड़क की फरियाद और गुहार लगा चुके हैं। फिर भी जब सड़क नहीं बना तो थक हार कर फिटकोरिया और लालपुर गांव के ग्रामीण हाथ में कुदाल और फावड़ा लेकर अपने दम पर श्रम दान से गांव जाने के लिए एक किलोमीटर सड़क बनाने के लिए निकल पड़े।
बुधवार से ग्रामीणों ने शुरू किया है सड़क बनाने का काम
बुधवार से ग्रामीणों ने श्रमदान के जरिए सड़क बनाने का काम शुरू कर दिया, जिसमें गांव की महिलाएं, पुरुष और युवक तन-मन-धन से सहयोग कर रहे हैं और गांव तक पहुंचने वाली उबड़-खाबड़ पगडंडी को मिट्टी और मोरम डालकर चौड़ी सड़क बना रहे हैं, जिससे आसानी से गांव तक एंबुलेंस व अन्य वाहन पहुंच सके।
प्रखंड मुख्यालय से करीब 14 किलोमीटर दूर हैं दोनों गांव
ग्रामीणों के मुताबिक, सरैयाहाट प्रखंड अंतर्गत कर्णपुरा पंचायत का फिटकोरिया और लालपुर गांव तीन दिशाओं से नदी से घिरा है। बरसात के दिनों में नदी में पानी आने से पूरा गांव टापू में तब्दील हो जाता है। इस कारण विशेष कर बरसात के दिनों में आमलोगों को आने जाने में और खासकर बीमार लोगों को इलाज के लिए अस्पताल ले जाने में भारी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। कर्णपुरा पंचायत का फिटकोरिया और लालपुर गांव प्रखंड मुख्यालय से करीब 14 किलोमीटर दूर है। इन दोनों गांव की आबादी करीब 700 के आसपास है। दोनों गांवों के तीन तरफ नदी और एक तरफ बहियार है। कुल मिलाकर यहां के ग्रामीण टापूनुमा इलाके में जीवन बसर करते हैं। जोरिया व नदी पर पुल के साथ साथ और गांव तक पहुंचने के लिए कोई मुकम्मल सड़क नहीं है। बरसात ही नहीं, सालों भर ग्रामीण नदी से होकर आना-जाना करने को मजबूर हैं। दोनों गांवों के लिए पहुंच पथ नहीं होने के कारण ग्रामीणों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
सड़क न होने की वजह से एंबुलेंस भी नहीं पहुंच पाती गांव
ग्रामीणों का कहना है कि गांव तक सड़क नहीं बन पाने से एम्बुलेंस नहीं पहुंच पाता है जिससे ग्रामीण, गर्भवती महिलाओं और मरीजों को खाट पर बाहर ले जाने को विवश हैं। ग्रामीण कहते हैं कि गांव की गर्भवती महिलाएं और रोगियों को इलाज के लिए खाट पर लाद कर अस्पताल ले जाना पड़ता है, क्योंकि गांव तक एंबुलेंस या ममता वाहन नहीं पहुंचते हैं। सबसे अधिक परेशानी तो बरसात के दिनों में होती है, जब नदी में पानी भर जाता है और उसमें घुसकर पार करना काफी खतरनाक हो जाता है। लोग कहते हैं कि जन प्रतिनिधियों के साथ प्रशासनिक अधिकारियों के पास नदी पर पुलिया और गांव तक पहुंचने के लिए सड़क बनाने की मांग करते-करते थक चुके हैं। अंततः अब ग्रामीण श्रमदान से ही सड़क बनाने के लिए कृत संकल्प हैं और घर से खाली समय निकाल कर सड़क बनाने के कार्य में जुट जाते हैं।
बच्चों के शादी-ब्याह के लिए नहीं आते हैं दूसरे गांव के रिश्तेदार
ग्रामीणों की माने तो फिटकोरिया और लालपुर तक आवागमन की सुविधा नहीं रहने से दूसरे इलाके के लोग इस गांव में रिश्तेदारी करना नहीं चाहते हैं। इस कारण गांव के कई युवक-युवतियों का समय पर शादी विवाह भी नहीं हो पा रहा है। गांव के युवा कहते हैं कि विकास का दंभ भरने वाली सरकार व प्रशासन का कई बार-इस ओर ध्यान आकृष्ट कराने के बाद भी अब तक सड़क व पुल निर्माण कराने को लेकर किसी भी स्तर से जब कोई दिलचस्पी नहीं दिखी तो हार कर ग्रामीणों ने श्रमदान से सड़क बनाने की पहल कर सरकार, प्रशासन और समाज में एक नजीर पेश कर रहे हैं।
क्या कहतीं हैं कर्णपुरा की ग्राम प्रधान दुलारी देवी
सरकारी जमीन के अभाव में सड़क का निर्माण नहीं हो सका है। अब ग्रामीण जमीन देने को तैयार हैं, लेकिन फंड की कमी के कारण सड़क अभी नहीं बन सकेगा। हालांकि गांव की कुछ गलियों में पीसीसी सड़कें जरूर बन गई हैं।
श्रमदान से सड़क निर्माण करने वालों में गांव की तिला देवी, दुखो देवी, रुणा देवी, संतलाल यादव, घनश्याम यादव, सुनील यादव, तीर्थशंकर मांझी, नेमो मिर्धा, सत्यनारायण यादव, किशन यादव, बालमुकुंद यादव समेत दोनों गांव की दर्जनों महिला व पुरुष शामिल हैं, जो घर के काम से समय मिलते ही हाथ में कुदाल व फावड़ा लेकर सड़क निर्माण में पसीना बहा रहे हैं। ग्रामीणों का दावा है इसी तरह ग्रामीणों का सहयोग रहा तो एक माह के भीतर वाहन पहुंचने लायक सड़क निर्माण का कार्य पूरा कर लिये जाने की उम्मीद है।