नई दिल्ली : वक्फ संशोधन बिल को अब 2025 के बजट सत्र में पेश किया जा सकता है. पहले इसे मौजूदा शीतकालीन सत्र में लाने की योजना थी, लेकिन भारतीय जनता पार्टी (BJP) के गोड्डा (झारखंड) के सांसद निशिकांत दुबे ने संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के कार्यकाल को बढ़ाने का प्रस्ताव रखा है. श्री दुबे के मुताबिक, समिति को अपनी रिपोर्ट संसद के बजट सत्र की पहली सप्ताह में पेश करनी चाहिए. यह बिल अब अगले साल प्रस्तुत किया जाएगा क्योंकि JPC की बैठकों में बढ़ते विवादों के कारण इसे टालना पड़ा है.
क्या है JPC में विवाद
वक्फ बिल पर चर्चा के लिए गठित JPC की बैठकें शुरू से ही विवादों में रही हैं. यहां हर बैठक में बीजेपी और विपक्षी दलों के सदस्य तीखी बहस और आरोप-प्रत्यारोप में उलझे रहते हैं. स्थिति इतनी गंभीर हो गई है कि एक बैठक में बोतल फेंकने की घटना भी सामने आई. इस विवादों के कारण JPC के कई महत्वपूर्ण कार्य, जैसे राज्यों का दौरा और विस्तृत रिपोर्ट तैयार करना, प्रभावित हुए हैं. विपक्षी नेताओं, खासकर AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने JPC की कार्यशैली और बिल के प्रावधानों पर सवाल उठाए हैं.
क्या सुधार करने का है प्रस्ताव
- केंद्रीय निगरानी: एक सेंट्रल वक्फ काउंसिल का गठन होगा, जो राज्यों के वक्फ बोर्डों की निगरानी करेगा.
- पारदर्शिता: वक्फ संपत्तियों का ऑडिट और उनकी सार्वजनिक जानकारी उपलब्ध कराई जाएगी.
- संपत्तियों की सुरक्षा: अतिक्रमण हटाने के लिए नए उपाय किए जाएंगे और संपत्तियों का सही उपयोग सुनिश्चित होगा.
- कानूनी मजबूती: वक्फ विवादों को सुलझाने के लिए ट्रिब्यूनल को अधिक अधिकार दिए जाएंगे.
वक्फ कानून में बदलाव की मांग क्यों
2013 में यूपीए सरकार द्वारा वक्फ बोर्ड की शक्तियों को बढ़ाने के बाद, आम मुस्लिम, गरीब मुस्लिम महिलाएं, तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं के बच्चे, शिया और बोहरा जैसे समुदाय लंबे समय से इस कानून में बदलाव की मांग कर रहे हैं. उनका कहना है कि वक्फ बोर्ड में आम मुसलमानों की कोई जगह नहीं रह गई है और केवल शक्तिशाली लोग इसका लाभ उठा रहे हैं. इसके अलावा, वक्फ संपत्तियों से प्राप्त होने वाले राजस्व का कोई आकलन नहीं किया जाता, और इस पर पारदर्शिता की कमी है. भारत में 30 वक्फ बोर्ड हैं, जिनसे हर साल लगभग 200 करोड़ रुपये का राजस्व आता है, जिसका सही उपयोग मुसलमानों के लिए किया जा सकता है.
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