झारखंड

बेटी और दामाद की आड़ में पिता की रंगदारी, सड़क खोद माहौल बिगाड़ रहे

रांची: बरियातू थाना क्षेत्र के चिरौंदी स्थित बैंक कॉलोनी के पूर्व अध्यक्ष और सदस्य मोहन दुबे ने आपराधिक छवि के कुछ अपने सहयोगियों के ज़रिये ज़मीन दलाली के नाम पर आम लोगों को परेशान करना शुरू कर दिया है. अपने IAS बेटी और दामाद की आड़ में पूरे इलाक़े में ज़मीन दलाली से जुड़े मामलों के सरग़ना बन बैठे हैं. सोमवार 1 जुलाई को इसी रंगदारी के क्रम में बैंक कॉलोनी की एक सड़क को ही खोद डाला और सड़क पर ही निर्माण करने पर आमादा हो गये. कारण सिर्फ़ बस इतना है कि वे गरीब लोगों पर उनकी ज़मीन बेचने के लिए दबाव बना रहे थे. जब वे लोग ज़मीन बेचने को तैयार नहीं हुए तो उन्होंने सड़क ही खोद डाली. ख़ास यह है कि इस सड़क पर पहले से ही सीवर लाइन बिछी हुई है.

बेटी-दामाद के नाम पर प्रशासन में भी जमाते है धौंस

मोहन दुबे अपनी IAS बेटी मेघा भारद्वाज और दामाद लोकेश मिश्रा के नाम पर पुलिस पर भी धौंस जमाते हैं. सोमवार को भी जब इस मामले की शिकायत बरियातू थाने में गई तो उनकी बेटी और दामाद ने पैरवी का खेल शुरू कर दिया. मौके पर पहुंची पुलिस ने काम को बंद करने और थाने में कागजात जमा करने को बोला. बता दें कि बैंक कॉपरेटिव के सदस्यों की खून-पसीने की कमाई से ख़रीदी गई ज़मीन को मोहन दुबे ने बिल्डरों को बेच दिया है.

मोहन दुबे सदस्यों को एनओसी के नाम पर 30 लाख रुपये की डिमांड बतौर ब्लैकमेलिंग करते हैं. जबकि 2016 में हाईकोर्ट बैंक कॉपरेटिव कॉलोनी के बोर्ड को भंग कर चुका है. हाईकोर्ट और सरकार के आदेश के बाद भी कॉपरेटिव में चुनाव तो नहीं कराया गया अलबत्ता बैंक कॉलोनी की ज़मीन को धोखाधड़ी से बेचा जाने लगा. राँची के सहायक निबंधक के कोर्ट ने साल 2016 में बैंक कॉपरेटिव सोसाइटी के बैंक अकाउंट्स सीज कर दिये थे.इसके बाद भी करोड़ों  की लेनदेन का फर्जीवाड़ा जारी है.

पंचरत्ना, एसोटेक और बिल्डर अभिषेक राठौड़ से कई फ़्लैट ले लिए गए. 5 करोड़ रूपये कैश वसूला गया. बताते चलें कि कॉपरेटिव डिपार्टमेंट में उनके ख़िलाफ़ पिछले छह महीने से जाँच भी चल रही है. उनकी बेटी मेघा भारद्वाज के रिक्वेस्ट पर कि पेपर वर्क के लिये पापा को समय दीजिये और पूरी की पूरी जाँच रुकवा दी गई. और अब उनके पापा कॉलोनी में दंगा फ़साद कर रहे हैं. रंगदारी कर रहे हैं. यही नहीं कॉपरेटिव रजिस्ट्रार सूरज कुमार के सामने यह स्वीकार करने के बाद कि कॉपरेटिव में चुनाव नहीं कराया गया है, उन्होंने फ़र्ज़ी ऑडिट और चुनाव के पेपर सौंप दिये हैं. आख़िर कौन उनको यह सब करने की ताक़त दे रहा है? इसका जवाब मुश्किल नहीं है.

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