बोकारो: बेरमो-फुसरो टुसू परब आयोजन समिति एवं JBKSS की ओर से मकर संक्रांति के अवसर पर रविवार को टुसू का विसर्जन किया गया. इसमें हजारों लोग टुसू लेकर टुसू विसर्जन यात्रा में शामिल हुए. यात्रा में लोग टुसू लेकर करगली गेट स्थित महात्मा गांधी चौक से पुराना बीडीओ ऑफिस, फुसरो बाजार, शहीद निर्मल महतो चौक फुसरो होते हुए हिंदुस्तान पुल फुसरो के समीप हथिया पत्थर स्थित दामोदर नदी में विसर्जन किया. इस दौरान खोरठा, नागपूरी आदि गीतों पर महिलाएं व युवतियां व युवक जमकर झूमे.
आंदोलनकारी नेता जयराम महतो हुए शामिल
टुसू विसर्जन यात्रा में आंदोलनकारी नेता जयराम महतो एवं मोती महतो मुख्य रूप से शामिल हुए. पत्रकारों से बातचीत में जयराम महतो ने कहा कि टुसू हमारी माय माटी की पहचान है. नया आंदोलन झारखंड में संस्कृति को स्थापित करने का काम कर रहा है. हम लोगों को अपनी भाषा, परंपरा व संस्कृति को बढ़ावा देने का काम करना चाहिए. कहा कि झारखंड के लोग अपने हक अधिकार के लिए जागरूक हो रहे हैं. जल, जंगल जमीन के लिए आंदोलन चलता रहेगा.
झारखंडी कलाकारों को मान सम्मान मिलना चाहिए : मोती महतो
मोती महतो ने कहा कि अपनी संस्कृति को बचाने के लिए टुसू पर्व का आयोजन किया जा रहा है. कहा जाता है कि बारह मास में 13 पर्व होते हैं. हम अपनी संस्कृति को बचाने के लिए त्योहारो को वृहद रूप से आयोजन नहीं करते हैं तो हमारी आने वाली पीढ़ी हमारे त्योहरो को छोटा समझेंगे. बिहार के भोजपूरी कालाकार खेसारी लाल यादव को लेकर पूछे गये सवाल पर कहा कि कुछ लोग जाति विशेष कह रहे है यह गलत बात है. हमारा कहना था कि हमारे झारखंडी कलाकारों को मान सम्मान मिलना चाहिए. उन्होंने कहा कि खेसारी लाल यादव अच्छे कालाकार है. वे अपने जगह पर सही हैं. मौके पर टुसू परब आयोजन समिति एवं झारखंडी भाषा खतियान संघर्ष समिति के हजारों लोग मौजूद थे.
हथिया बाबा धाम में भी उमड़ी श्रद्धालुओ की भीड़
हथिया बाबा धाम में पूजा अर्चना को लेकर उमड़ी श्रद्धालुओ की भीड़. साथ ही हथिया पत्थर मेला की विशेषता यह भी है कि यहां झारखंड की संस्कृति की झलक भी दिखायी देती है. उतर वाहिनी दामोदर नदी के बीचोबीच पत्थर का हाथीनुमा आकार कई दशकों से विराजमान है. जो कि पिकनिक स्पॉट के साथ-साथ मकर संक्रांति से जुड़ा एक आस्था का प्रतीक है. जिसमें बेरमो कोयलांचल सहित कई दूसरे प्रांतों के लोग भी मकर सक्रांति के स्नान के लिए आते हैं और हथिया गोसाई का पूजा अर्चना कर अपनी मुराद की मन्नतें मांगते हैं. मुराद पूरी होने पर यहां एक परंपरा के अनुसार सफेद रंग की बकरे एवं मुर्गे की बलि दी जाती है. लोग यहां बीच नदी में पत्थर की आकृति के बने प्राकृतिक हाथी व मंदिरों में पूजा अर्चना करते हैं.
हथिया बाबा धाम को लेकर है प्रसिद्ध कहानी
इस पत्थर के हाथी के पीछे पुरानी मान्यता के अनुसार एक बेहद प्रसिद्ध कहानी बताई जाती है. यहां के लोगों का कहना है के बीच नदी में हाथी नुमा पत्थर आज के कलयुग के दौर में भी जीवित है. लोग कहते हैं कि यहां पहले सामान्य दामोदर नदी हुआ करती थी. प्राचीन काल में कोई राजा ने अपने पुत्र के विवाह में इस नदी को पार करने के लिए दामोदर नदी से विनती किया कि पानी कम हो जाए. सहजता से नदी पार हो जाएंगे तो बलि चढ़ाकर पूजा अर्चना करेंगे. इस पर दामोदर नदी का पानी कम हो गया. राजा और उनके बाराती नदी पार कर गए. लेकिन वापसी में भी राजा ने पूजा नहीं की और नदी को अपशब्द कहा. उसी समय राजा, बाराती, दुल्हा-दुल्हन सहित हाथी, घोड़े, ढोल नगाड़ा सभी पत्थर में तब्दील हो गए. आज भी गौर से देखने से उक्त सभी आकृतियां स्पष्ट नजर आती हैं.
हथिया पत्थर धाम प्रसिद्ध हो चुका है. लोग यहां दूर-दूर से आकर पूजा अर्चना करते हैं. यहां लगभग 150 वर्षों से ज्यादा समय से पूजा हो रही है. पहले यहां कम लोग जुटते थे, लेकिन अब इसकी प्रसिद्धि फैल गई है. यही कारण है कि इस स्थान को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने की मांग उठने लगी. इस मेला में पेटरवार पुलिस के साथ साथ बेरमो पुलिस-प्रशासन भी सहयोग करता है.
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