रांची: झारखंड में भाषा विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है. बजट सत्र शुरू होने के साथ ही यह विवाद खुलकर सड़कों पर आ गया है. अब आदिवासी संगठन भी स्थानीय भाषा को लेकर मुखर हो गए हैं. आज झारखंड बजट सत्र का दूसरा दिन है, कई आदिवासी संगठनों ने मानव श्रृंखला बनाकर सरकार पर दबाव डालने की कोशिश की है. रांची में सहजानंद चौक से सेटेलाइट कॉलोनी तक मानव श्रृंखला बनाकर झारखंड में स्थानीय भाषा को प्राथमिकता देने और 1932 के खतियान आधार पर नियोजन नीति बनाने की मांग की है. अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद के महानगर अध्यक्ष पवन तिर्की ने बताया कि अभी तो यह झांकी है.
लेकिन अहर सरकार उनकी मांगे पूरी नहीं करती है तो व्यापक आंदोलन शुरू किया जाएगा. आजसू ने भी स्थानीयता को लेकर 7 मार्च को विधानसभा घेराव करने की घोषणा की है. दूसरी तरफ सत्ताधारी कांग्रेस स्थानीय भाषा की सूची में हिंदी को शामिल करने का दबाव सरकार पर डाल रही है. दरअसल, झारखंड सरकार के कार्मिक, प्रशासनिक सुधार और राजभाषा विभाग ने 24 दिसंबर को एक नोटिफिकेशन जारी किया था और राज्य के 11 जिलों में स्थानीय स्तर की नियुक्तियों के लिए भोजपुरी, मगही और अंगिका को क्षेत्रीय भाषाओं की सूची में जगह दे दी थी. जिसके बाद झारखंड में भाषा विवाद शुरू हुआ. इसके बाद झारखंड सरकार ने भाषा विवाद को शांत करने के लिए बोकारो और धनबाद में मगही और भोजपुरी की मान्यता समाप्त कर नए सिरे से अधिसूचना जारी की. लेकिन फिर भी भाषा विवाद तूल पकड़ता जा रहा है.