नई दिल्ली : आज बिहार के लिए ऐतिहासिक दिन है. पूर्व उपमुख्यमंत्री जननायक कर्पूरी ठाकुर को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न दिया जाएगा. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हाथों रामनाथ ठाकुर अपने पिता के सम्मान को ग्रहण करेंगे. रामनाथ ठाकुर दिल्ली पहुंच चुके हैं. सम्मान समारोह में शामिल होने से पहले मीडिया से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा कि बिहार और देश के लोग आज उतने ही खुश हैं, जितना मैं आज खुश हूं. सीएम नीतीश कुमार ने कर्पूरी ठाकुर जी को भारत रत्न से सम्मानित करने के लिए भारत सरकार से लगातार अपील की थी. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार व दोनों उपमुख्यमंत्री इस समारोह का गवाह बनेंगे.
दरअसल, जननायक कर्पूरी ठाकुर की 100वीं जयंती के एक दिन पहले 23 जनवरी, 2024 को उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किये जाने की घोषणा राष्ट्रपति कार्यालय द्वारा की गयी थी. इस घोषणा पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सहित पक्ष और विपक्ष के तमाम नेताओं ने कर्पूरी ठाकुर के योगदान को याद कर उनकी सराहना की थी.
शनिवार को राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू देश के पांच विभूतियों को भारत रत्न से सम्मानित करेंगी. पूर्व उपप्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी, पूर्व पीएम चौधरी चरण सिंह, नरसिम्हा राव और डॉ. एमएस स्वामीनाथन को भी भारत रत्न से सम्मानित किया जाएगा. बिहार के पूर्व सीएम कर्पूरी ठाकुर का भारत रत्न सम्मान उनके पुत्र प्राप्त करेंगे. बिहार के लिए शनिवार का दिन बेहद ऐतिहासिक है. कर्पूरी ठाकुर की सादगी और समर्पण ही उन्हें अन्य नेताओं से अलग बनाता है.
कहा जाता है कि पूरी जिंदगी उन्होंने कांग्रेस विरोधी राजनीति की और अपना सियासी मुकाम हासिल किया. सत्तर के दशक में हुए जेपी आंदोलन एक टर्निंग प्वाइंट बन गया जब सारे समाजवादी और पिछड़े वर्ग के नेता एक झंडे के नीचे खड़े हो गए. कर्पूरी ठाकुर 1970 में पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बने. 22 दिसंबर 1970 को उन्होंने पहली बार राज्य की कमान संभाली थी. उनका पहला कार्यकाल महज 163 दिन का रहा था. 1973-77 के बीच लोकनायक जयप्रकाश के छात्र-आंदोलन से कर्पूरी भी जुड़ गए. 1977 में समस्तीपुर संसदीय निर्वाचन क्षेत्र से वह पहली बार सांसद बने. लेकिन बहुत जल्द लोकसभा से इस्तीफा देकर 24 जून, 1977 को कर्पूरी एक बार फिर मुख्यमंत्री बना दिए गए. यह कार्यकाल भी दो साल पूरे नहीं कर पाया. 1980 में मध्यावधि चुनाव हुआ तो कर्पूरी ठाकुर के नेतृत्व में लोक दल बिहार विधानसभा में मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभरा और कर्पूरी ठाकुर इसके नेता बने.
महज दो साल से भी कम समय के कार्यकाल में उन्होंने समाज के दबे-पिछड़ों लोगों के हितों के लिए काम किया. बिहार में मैट्रिक तक पढ़ाई मुफ्त की दी. वहीं, राज्य के सभी विभागों में हिंदी में काम करने को अनिवार्य बना दिया. उन्होंने अपने कार्यकाल में गरीबों, पिछड़ों और अति पिछड़ों के हक में ऐसे तमाम काम किए, जिससे बिहार की सियासत में आमूलचूल परिवर्तन आ गया. इसके बाद कर्पूरी ठाकुर की राजनीतिक ताकत में जबरदस्त इजाफा हुआ और वो बिहार की सियासत में समाजवाद का बड़ा चेहरा बन गए.
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