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बीमारी से बचने के लिए बच्चों को अब 6 नहीं 24 माह तक कराना होगा नियमित स्तनपान : आईसीएमआर

JoharLive Desk

नई दिल्ली : स्तनपान को लेकर समाज में मौजूद धारणा को बदलना होगा। अब छह नहीं, बल्कि महिलाओं को 24 माह तक अपने बच्चों को नियमित स्तनपान कराना होगा। अगर वे ऐसा नहीं करती हैं तो उनके बच्चों को हर समय पांच बीमारियां होने का खतरा बना रहेगा। इंडियन काउंसिल मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के मुताबिक, हमारे देश में नवजात को छह माह की अवधि तक नियमित स्तनपान नहीं कराया जाता। मौजूदा समय में 53 फीसदी महिलाएं ही छह माह तक स्तनपान की अनिवार्यता को पूरा करती हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2030 तक अनिवार्य स्तनपान के 70 प्रतिशत लक्ष्य तक पहुंचाने की बात कही है। स्तनपान न कराने की वजह से 0-5 वर्ष की आयु के बच्चों को कई तरह की बीमारियां घेरने लगती हैं। आईसीएमआर के सदस्य एवं पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के पदाधिकारी प्रो. ललित दंदोना ने बुधवार को बताया कि अब सभी महिलाओं को अपने बच्चों के स्वास्थ्य के प्रति कहीं ज्यादा सचेत होना पड़ेगा। 0-5 साल और 5-10 साल तक की आयु के बच्चों को एनीमिया, लो बर्थ रेट, बच्चों के विकास में बाधक बनने वाले तत्वों का सक्रिय होना।

पांच साल से कम आयु के बच्चों की मौत और वजन कम होना या बहुत अधिक बढ़ना, जैसी बीमारियां अपनी चपेट में ले रही हैं। इसके कई कारण हैं। पहला, बच्चे को तय मापदंडों के अनुसार, पौष्टिक आहर नहीं मिलता। कहा तो ये जाता है कि माताएं अपने बच्चों को कम से कम छह माह तक अनिवार्य तौर पर स्तनपान कराएंगी, लेकिन रिसर्च बताती है कि यह आंकड़ा अभी 50 फीसदी के आसपास ही पहुंच सका है। दूसरा, मां और नवजात को पौष्टिक आहार नहीं मिलता।

नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन, आईसीएमआर हैदराबाद की पदाधिकारी डॉ. आर हेमलथा कहती हैं, अभी मेडिकल भाषा में नियमित स्तनपान के अलावा एक और टर्म इस्तेमाल की जाती है। वह है कम्पलीमेंट्री स्तनपान। इसका मतलब है कि माताओं को छह माह तक तो अनिवार्य तौर पर स्तनपान कराना ही है, इसके अलावा उसे 6 से 24 माह तक कम्पलीमेंट्री स्तनपान भी कराना चाहिए। हमारे समाज में स्तनपान को लेकर अभी तक जितना भी प्रचार प्रसार हुआ है, उसमें छह का जिक्र ही होता रहा है।

मीडिया या सोशल मीडिया में बड़ी-बड़ी हस्तियां जब स्तनपान पर बात करती हैं तो वे भी छह माह की अवधि तक नियमित स्तनपान की सलाह देती हैं। इसका फायदा क्या हुआ, कुछ नहीं। अभी तक जब छह माह तक स्तनपान कराने का टारगेट भी नहीं हासिल किया जा सका है, तो कम्पलीमेंट्री स्तनपान जो कि 24 माह तक कराया जाना चाहिए, यह कैसे और कब पूरा हो पाएगा। यदि बच्चों को पांच बीमारियों से बचाना है तो कम्पलीमेंट्री स्तनपान बिना किसी झिझक और अनिवार्य तौर पर कराना होगा।
आईसीएमआर द्वारा जारी ये आंकडे चौंकाने वाले हैं
देश में साल 2017 के दौरान लो बर्थ रेट का प्रतिशत 21 रहा है। इसमें सबसे कम नौ प्रतिशत मिजोरम तो सबसे ज्यादा उत्तरप्रदेश यानी 24 फीसदी रहा है। अगर 1990 से लेकर 2017 तक की बात करें तो महज लो बर्थ रेट में महज 1.1 प्रतिशत की वार्षिक गिरावट दर्ज की गई है। यह गिरावट दर सिक्किम में 3.8 तो दिल्ली में 0.3 प्रतिशत रही है। बच्चों के संपूर्ण विकास में बाधा की बात करें तो यह प्रतिशत 39 है। इसमें गोवा 21 फीसदी तो उत्तरप्रदेश में सर्वाधिक 49 प्रतिशत है। 1990 से लेकर 2017 तक इस बाधा को केवल 2.6 फीसदी तक कम किया जा सका है।

इसमें केरल सबसे ऊपर चार फीसदी तो मेघालय में 1.2 प्रतिशत गिरावट सामने आई है। चाइल्ड अंडरवेट की बात करें तो 2017 तक 33 फीसदी बच्चे इसमे ग्रसित थे। इसमें सबसे कम प्रतिशत मणिपुर 16 तो सर्वाधिक 42 प्रतिशत झारखंड में दर्ज हुआ है। 1990 से 2017 के बीच इस रेट में केवल 3.2 फीसदी की गिरावट आई है। इसमें 5.4 प्रतिशत के साथ मेघालय पहले तो 1.8 प्रतिशत की गिरावट के साथ दिल्ली सबसे निचले पायदान पर है। खून की कमी, यानी एनीमिया, इस बीमारी के मामले में भी देश के सभी राज्यों का प्रतिशत उत्साहवर्धक नहीं है। 2017 तक करीब 60 प्रतिशत बच्चे एनीमिया से ग्रसित रहे हैं।

इनमें मिजोरम 21 प्रतिशत तो हरियाणा 74 प्रतिशत पर रहा है। एनीमिया की इस दर में गिरावट की बात करें तो देश में इसका प्रतिशत 0.7 है। यह दर 1990 से 2017 के बीच की है। इस दर को कम करने में मिजोरम 8.3 प्रतिशत के साथ पहले स्थान पर है, जबकि गोवा एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां इस दर में कोई भी कमी नहीं आई। छह माह तक नियमित स्तनपान के मामले में देश का प्रतिशत 53 है। इसमें मेघालय 34 प्रतिशत तो छत्तीसगढ़ का प्रतिशत 74 रहा है। 1990 से 2017 तक नियमित स्तनपान में 1.2 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इसमें चार प्रतिशत वृद्धि के साथ गोवा पहले नंबर पर तो उत्तरप्रदेश जहां कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है, सबसे निचले स्थान पर है।

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