इस्लामाबाद. पाकिस्तान अपनी ही लगाई आग में जल रहा है. हिंसा के बाद तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान का मार्च इस्लामाबाद के करीब पहुंचता जा रहा है. इसके साथ ही पाकिस्तान की इमरान खान सरकार की धड़कनें बढ़ती जा रही हैं. इमरान ने शुक्रवार को सुरक्षा मामलों की सबसे बड़ी संस्था नेशनल सिक्योरिटी कमेटी की मीटिंग बुलाई है. इसमें आर्मी और ISI के चीफ भी शिरकत करेंगे.
फ्रांस के राजदूत को मुल्क से निकालने समेत 4 मांगों को लेकर TLP कार्यकर्ता इस्लामाबाद मार्च कर रहे हैं. इस बीच, TLP के हमलों में मारे जाने वाले पुलिसकर्मियों की संख्या 6 हो गई है. सूचना एवं प्रसारण मंत्री फवाद चौधरी ने गुरुवार को कहा- TLP को हम दहशतगर्द मानते हैं. उनसे से सख्ती से निपटा जाएगा. ब्लैकमेल होने का सवाल ही नहीं उठता. परेशानी की बात यह है कि ज्यादातर शहरों में TLP के लोग पैदल हैं. सरकार के कंटेनर्स और रोड किनारे खोदी गई खाईयां उन्हें रोकने में नाकाम हैं.
तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (TLP) ने साफ कर दिया है कि अगर सरकार ने पुलिस या दूसरे सुरक्षा बलों के जरिए उसे रोकने की कोशिश की तो बड़े पैमाने पर हिंसा हो सकती है और इसकी जिम्मेदार इमरान खान सरकार होगी.
पंजाब प्रांत की सरकार ने राज्य की सुरक्षा 60 दिनों के लिए रेंजर्स के हवाले कर दी है, लेकिन इसका फायदा होता नहीं दिख रहा. इसकी वजह यह है कि TLP के लोगों की संख्या काफी ज्यादा है और इनमें कुछ बच्चे भी हैं. सुरक्षा बल इनके खिलाफ बल प्रयोग नहीं कर पा रहे हैं.
क्या है TLP की मांग?
टीएलपी की पहली मांग 6 महीने से जेल में बंद कट्टरपंथी नेता साद रिजवी को रिहा को लेकर है. सरकार इसके लिए मान गई है. इमरान सरकार का ये भी कहना है कि TLP पर बैन भी खत्म किया जाएगा और उसके लोगों को रिहा भी कर दिया जाएगा, लेकिन TLP फ्रांस के राजदूत को निकालने की मांग पर अड़ी हुई है. लेकिन सरकार इसके लिए तैयार नहीं है.
फ्रांस के राजदूत को लेकर बढ़ा विवाद
सरकार का कहना है कि अगर ऐसा किया गया तो मुल्क को इसके गंभीर नतीजे भुगतने होंगे. यूरोपीय देश पाकिस्तान के खिलाफ हो जाएंगे. जीएसपी प्लस स्टेटस खत्म हो जाएगा और पाकिस्तानियों का यूरोप जाना मुश्किल हो जाएगा. दूसरी तरफ, TLP झुकने को तैयार नहीं है. TLP का कहना है कि पैगम्बर की बेअदबी के मामले में फ्रांस के राजदूत को देश से निकाला जाए.