रांची : झारखंड में 90 के दशक में ही जमीन घोटाले की पटकथा लिखी गई थी। तब से लेकर अब तक झारखंड में 20 हजार करोड़ रुपए का जमीन घोटाला हो चुका है। 90 के दशक में रांची में लगभग 200 एकड़ सरकारी भूमि के अवैध हस्तांतरण का मुद्दा बिहार विधानसभा में गूंजा था, उस वक्त यह 400 करोड़ रुपए का घोटाला बताया गया था। इसकी गंभीरता को देखते हुए पहले तो विधानसभा ने इसकी जांच के लिए सात सदस्यीय कमेटी बनाई। तत्कालीन भू-राजस्व मंत्री इंदरसिंह नामधारी ने 1998 में जांच का आदेश दिया। इसके दो साल बाद झारखंड अलग राज्य बन गया, तो जांच और कार्रवाई का अधिकार झारखंड सरकार के जिम्मे आ गया। हालांकि, वर्षों तक चली जांच में झारखंड प्रशासनिक सेवा के कई अधिकारियों पर कार्रवाई की सिफारिश हुई। निलंबित हुए। कुछ कनीय अधिकारी दंडित भी हुए, लेकिन आज भी इसका अंतिम फलाफल नहीं निकल सका। इस घोटाले में रांची के एसडीओ, डीसीएलआर व अन्य पदों पर रहे बिहार प्रशासनिक सेवा के अधिकारी जेएन सिंह, नरेश प्रसाद, राकेश प्रसाद पर गंभीर आरोप लगे थे। सभी अधिकारी अपने अपने को निर्दोष बताते रहे। बिहार कैडर के आईएएस अधिकारी एसएस वर्मा के कार्यकाल में रांची में बड़ा जमीन घोटाला हुआ था। वर्मा झारखंड बनने से पहले रांची के डीसी भी रहे व दक्षिणी छोटानागपुर के कमिश्नर भी। उन्होंने डीसी रहते जो आदेश दिया, उसके विरुद्ध कमिश्नर की हुई अपील के बाद खुद ही निर्णय लिया। हालांकि, अलग झारखंड बनने के बाद वे बिहार कैडर में चले गए। बिहार में उनके विरुद्ध हुई कार्रवाई में वे बच निकले। हालांकि, बाद में उनके यहां हुई छापामारी में 1.40 करोड़ की अवैध संपत्ति जब्त हुई। 2011 में उनके रुकनपुरी, पटना स्थित आलीशान मकान को जब्त कर उसमें दलितों के लिए स्कूल खोल दिया गया।
रांची ही नहीं देवघर में भी वर्ष 2000 के बाद लगभग एक दशक में 771.5 एकड़ गैर बिक्री योग्य भूमि को बिक्री योग्य बता कर अवैध हस्तांतरण का मामला उजागर हुआ था। इस घोटाले का आंकड़ा भी लगभग 1000 करोड़ बताया गया। इसकी भी झारखंड सरकार के स्तर पर जांच हुई। तीन तीन बड़े आईएएस अधिकारियों के विरुद्ध गंभीर आरोप लगे। लेकिन जांच और कार्यवाही में उनके विरुद्ध आरोप तय नहीं हुआ और मामले को संचिकास्त कर दिया गया।
सरकारी जमीन से जुड़े 21 मामलों में भूमि की प्रकृति बदल कर अवैध हस्तांतरण किया गया था। उस समय भी सरकारी जमीन की प्रकृति बदल कर उसका अवैध हस्तांतरण किया गया था। इसमें कई अंचलाधिकारी, अंचल निरीक्षकों के अलावा राज्य प्रशासनिक सेवा के लगभग चार और दो आईएएस अधिकारियों पर गंभीर आरोप लगे थे। अब सेना जमीन घोटाले को लेकर लगातार जांच चल रही है। फर्जी म्यूटेशन की वजह से ईडी के द्वारा यह कार्रवाई की जाएगी। जब्त की गई जमीन का बाजार मूल्य 20 करोड़ के करीब है। इस जमीन की जब्ती के बाद ईडी इस संबंध में पत्राचार करेगी, सेना को इस जमीन पर दोबारा दावा करना होगा। इसके बाद ईडी इस जमीन को सीधे सेना को सुपुर्द करेगी। फिलहाल राज्य सेवा के 63 अफसर जमीन घोटाले की जांच की आंच में हैं। इन्होंने जमीन की प्रकृति ही बदल दी। अवैध हस्तांतरण किया। जमीन घोटाले के मामले में आइएएस अफसर छवि रंजन सलाखों के पीछे हैं। वहीं इसकी आंच सीएम तक भी पहुंच गई है।
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