स्वामी दिव्यज्ञान

लोहरदगा : लोकसभा के चौथे और झारखंड के पहले चरण के लिए आज शाम यानी शनिवार को 5 बजे से लोहरदगा सीट पर प्रचार-प्रसार थम जाएगा. सभी उम्मीदवार जीत सुनिश्चित करने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास कर रहे हैं, जिससे यह एक बेहद संघर्षपूर्ण लड़ाई बन गई है.

एक नजर प्रत्याशियों पर

यहां बात की जाए प्रत्याशियों की तो कांग्रेस उम्मीदवार, सुखदेव भगत अपने क्षेत्र में अपनी मजबूत उपस्थिति के कारण लोकप्रिय हैं, वहीं भाजपा प्रत्याशी समीर उरांव अपने विनम्र स्वभाव के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने अपने भाषणों के लिए देश भर में लोकप्रियता हासिल की है. यही नहीं देश के पीएम नरेंद्र मोदी से उन्हें प्रशंसा भी प्राप्त है. यहां से तीसरे उम्मीदवार जो वर्तमान में बिष्णुपुर निर्वाचन क्षेत्र से विधायक भी है वह है चमरा लिंडा, जो छात्र सक्रियता के लिए जाने जाते है. हालांकि, उन्हें झारखंड मुक्ति मोर्चा द्वारा निलंबित कर दिया गया है.

चुनाव में योजनाओं का रणनीति संग्रह: चमक, सुकून, और उत्प्रेरणा

लोहरदगा लोकसभा क्षेत्र में चल रहे चुनावों ने भाजपा एवं राज्य सरकार द्वारा जन कल्याण के लिए लागू की गई विभिन्न केंद्रीय योजनाओं की ओर भी ध्यान आकर्षित किया है. जिससे इंडी एलायंस पार्टी को लाभ होने की संभावना है. उदाहरण के लिए, मुफ्त गैस सिलेंडर प्रदान करने वाली उज्ज्वला योजना को कुछ लोग भूल गए होंगे, लेकिन अभी भी इसका भाजपा के पक्ष में चुनावों पर थोड़ा प्रभाव पड़ सकता है. दूसरी ओर, राज्य सरकार की अबुवा आवास योजना और स्वच्छ भारत अभियान ने स्थानीय लोगों के बीच लोकप्रियता हासिल की है. इसका श्रेय राज्य में इंडी अलायंस सरकार को दिया जा सकता है. पीएम किसान सम्मान योजना, जो रुपये की वार्षिक राशि प्रदान करती है. बहुसंख्यक लोगों के लिए 6000 वोट एनडीए या इंडिया एलायंस के पक्ष में भी जा सकते हैं, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि उन्हें योजना से लाभ हुआ है या नहीं.

एक नजर योजनाओँ की विसंगतियों पर

हालांकि कुछ विसंगतियां भी हैं, जैसे 50 वर्ष से अधिक की अनुसूचित जनजाति की महिलाओं को रुपये नहीं मिलते. राज्य सरकार के वादे के अनुसार उनके बैंक खातों में 1000 रु. यह चुनाव में इंडी अलायंस के खिलाफ जा सकता है. इसी तरह, वृद्धावस्था पेंशन योजना का चुनावों पर कोई बड़ा प्रभाव नहीं पड़ सकता है, क्योंकि कई पात्र व्यक्ति चुनाव ड्यूटी पर हैं या दूसरों को वोट देने के लिए मनाने में असमर्थ हैं. लेकिन इसे अभी भी इंडी एलायंस का एक अनुकूल कदम माना जा सकता है. अंत में, भाजपा के शासनकाल के दौरान, कुछ धार्मिक अनुसूचित जनजाति समुदायों के पुजारियों को रुपये का मासिक भत्ता 1000 रुपये दिया जाता था. लेकिन वर्तमान सरकार के तहत इसे बंद कर दिया गया है, जो संभावित रूप से चुनाव में इंडी अलायंस के खिलाफ जा सकता है.

कुल मिलाकर, ये योजनाएं और जन कल्याण पर उनका प्रभाव लोहरदगा लोकसभा क्षेत्र में मतदान पैटर्न और परिणामों को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. उपरोक्त आकलन आरंभिक दृष्टिकोण से कुल मिला कर भारतीय जनता पार्टी के कैंडिडेट और कांग्रेस के कैंडिडेट को प्रभावित करता है. अगर समीर उरांव को या सुखदेव भगत को व्यक्तिगत आधार पर चुनाव लड़ने कहां जाए तो चमरा लिंडा इन दोनों पर काफी भारी पड़ेंगे.

गुमला विधानसभा : दलों के बीच चुनौतीपूर्ण संघर्ष का मैदान

गुमला एक महत्वपूर्ण विधानसभा है जहां से राज्य के कार्डिनल, राज्य के कई मंत्री और राष्ट्रीय स्तर के कई नेता और समाज सेवक प्रस्तुत हुए है.  ईसाईकरण के कारण क्षेत्र में इंडिया गठबंधन बढ़त ले सकता है. हालांकि डॉ शिव शंकर उरांव, मिसिर कुजूर और दिलीप बड़ाईक के जैसे लोग लगे हैं. साहू समाज के भूपेंद्र साहू, हीरा साहू जैसे लोग भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में मतों को लाने का प्रयास कर रहे हैं. वहीं कांग्रेस में एमएलए भूषण बाड़ा अपनी ओर वोट लाने का प्रयास कर रहे हैं.

गुमला विधानसभा के उदाहरण से पता चलता है. भाजपा के पास चैनपुर, डुमरी, रायडीह, गुमला शहर का वोटिंग क्रम है. जिसमें गुमला शहर को सबसे ज्यादा वोट मिलने की उम्मीद है. इसके विपरीत, कांग्रेस के पास गुमला शहर, रायडीह, डुमरी और चैनपुर मतदान क्रम है., जिससे पार्टी को अधिक समर्थन मिलने की संभावना है. यह रायडीह और गुमला शहर में भाजपा के पारंपरिक गढ़ों के साथ, विधानसभा के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न दलों के लिए समर्थन के कई स्तरों को उजागर करता है.

सिसई तसलीम : चुनावी मंच पर नाटक और संघर्ष

सिसई विधानसभा में तीन भाजपा नेता हैं : डॉ. दिनेश उरांव, पूर्व विधान सभा अध्यक्ष, किरणमाला बाड़ा, जिला परिषद के अध्यक्ष और पूर्व आईजी डॉ. अरुण उरांव. सिसई विधानसभा में कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा के बीच एक मजबूत समन्वय देखा गया है, जिसमें झामुमो के पास एक विधायक सीट है. यह बीजेपी के लिए कड़ी प्रतिस्पर्धा साबित हो सकती है. खासकर जेएमएम के निलंबित सदस्य चमरा लिंडा के साथ. जो कांग्रेस और बीजेपी दोनों उम्मीदवारों को कड़ी टक्कर दे रहे हैं. यदि भाजपा नेता एकजुट रहें और कामडारा ब्लॉक के ईसाई समाज के जिला परिषद सदस्य दीपक कुंडुलना का समर्थन प्राप्त करें, तो उनके  बढ़त की संभावना है. हालांकि, सिसई विधानसभा में चमरा लिंडा की मौजूदगी चुनाव के नतीजे पर असर डाल सकती है. साहू तेली समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष अरुण कुमार साहू कामडारा और बसिया क्षेत्र से आते हैं उनके प्रभाव से साहू समाज के उसे क्षेत्र के मतों कहां बड़ा हिस्सा कांग्रेस में भी जा सकता है.

राजनीति का रंगीन संगम: मांडर में चुनावी रणनीति एवं उपयोग

मांडर विधानसभा लोहरदगा लोकसभा क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है, और यह तीन मुख्य उम्मीदवारों – चमरा लिंडा (स्वतंत्रता उम्मीदवार), सुखदेव भगत (कांग्रेस उम्मीदवार), और समीर उरांव (भाजपा उम्मीदवार) के लिए एक महत्वपूर्ण युद्ध का मैदान है. इस क्षेत्र में कांग्रेस, बीजेपी और चमरा लिंडा के बीच कड़ी टक्कर होने की उम्मीद है. जहां कांग्रेस नेता बंधु तिर्की को ईसाई, मुस्लिम और आदिवासी समुदायों का मजबूत समर्थन प्राप्त है, वहीं भाजपा के पारंपरिक मतदाता सदान (झारखंड के गैर आदिवासी मूल निवासी) हैं.

मांडर विधानसभा में जीत की कुंजी आदिवासी समुदाय के पास

मांडर विधानसभा में जीत की कुंजी आदिवासी समुदाय के पास है, जो आगामी चुनाव में एक महत्वपूर्ण कारक है. बेड़ो और चान्हो में बीजेपी को सबसे ज्यादा वोट मिलने की उम्मीद है, जबकि मांडर में कांग्रेस के अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद है. इस बीच, चमरा लिंडा को लापुंग में अधिक वोट मिलने की उम्मीद है, लेकिन मांडर में उनकी संभावना अपेक्षाकृत कम लगती है. लापुंग, चान्हो और इटकी में कांग्रेस को बीजेपी से ज्यादा वोट मिलने की उम्मीद है.

कांग्रेस नेता शिल्पी नेहा तिर्की और उनके पिता बंधु तिर्की का प्रभाव उनकी पार्टी की सफलता के लिए महत्वपूर्ण होगा, जबकि गंगोत्री कुजूर और सनी टोप्पो की समन्वय टीम भाजपा के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी, क्योंकि सनी टोप्पो वे हाल ही में कांग्रेस से शामिल हुए हैं. चमरा लिंडा का अपना जनाधार और देव कुमार धान का समर्थन भी उनके अभियान के लिए अहम होगा. इतना कुछ दांव पर होने के कारण, सभी की निगाहें मांडर विधानसभा पर होंगी क्योंकि यह लोहरदगा लोकसभा क्षेत्र में चुनाव के नतीजे को प्रभावित कर सकता है.

बिसुनपुर विधानसभा : लोहरदगा लोकसभा चुनाव में राजनीतिक क्षेत्र की महत्वपूर्ण धारा

लोहरदगा लोकसभा चुनाव में बिसुनपुर विधानसभा एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है, दो प्रमुख प्रत्याशी भाजपा के समीर उरांव एवं निर्दलीय कद्दावर नेता चमरा लिंडा इसी विधानसभा क्षेत्र के मूल निवासी हैं. तीसरे कांग्रेस के कद्दावर नेता सुखदेव भगत इस विधानसभा क्षेत्र के दो ब्लॉक में बहुत प्रसिद्ध बीडीओ एवं सीओ रह चुके हैं. राजनीतिक विशेषज्ञ रहमान अंसारी के अनुसार, इस क्षेत्र की चार विधानसभा सीटें संभावित रूप से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस पार्टी के बीच विभाजित हो सकती हैं. हालांकि, दोनों पार्टियों के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा है, जिससे अंतिम परिणाम की भविष्यवाणी करना मुश्किल हो गया है. जिन इलाकों में स्वयं सेवी संस्था विकास भारती लोगों के बीच सक्रिय है, वहां वोट का झुकाव बीजेपी की तरफ हो सकता है. इसी तरह घाघरा जैसे सदान समुदाय की बहुलता वाले इलाके में भी बीजेपी को फायदा होने की उम्मीद है. भाजपा का अल्पसंख्यक मोर्चा भी मुस्लिम समाज के विरोध के बावजूद, कोटाम और सिशी क्षेत्र में कुछ स्थानों पर सक्रिय रूप से प्रचार कर रहा है, इस बार ऐसा दिख रहा है की सबसे बड़े अल्पसंख्यक समाज के लोगों का फैसला अंतिम भाजपा ट्रेंड को देखते हुए आखिरी रात में होगा.

लोहरदगा क्षेत्र में प्रमुखता में सबलता की तलाश

लोहरदगा लोकसभा क्षेत्र कांग्रेस पार्टी के लिए बहुत महत्व रखता है, क्योंकि उनके उम्मीदवार इस क्षेत्र में रहते हैं और सुखदेव भगत पूर्व में विधायक भी यहीं से चुने गए हैं. वर्तमान में, इस विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व रामेश्वर उरांव द्वारा किया जाता है, जो न केवल विधायक हैं बल्कि झारखंड के वित्त मंत्री भी हैं. इसके अतिरिक्त, पूर्व राज्यसभा सांसद धीरज साहू भी इसी क्षेत्र के निवासी हैं. अगर लोहरदगा विधानसभा में सुखदेव भगत को कम वोट मिले तो इसके लिए रामेशवर उरांव जिम्मेदार हो सकते हैं. किस्कू और किस्को प्रखंड में अल्पसंख्यक वोट शेयर और सेन्हा प्रखंड में मिश्रित आबादी की उपस्थिति, इन क्षेत्रों को चुनाव जीतने के लिए महत्वपूर्ण बनाती है.

मुख्य मुकाबला इंडी एलायंस के सुखदेव भगत और भाजपा के समीर उरांव के बीच

लोहरदगा लोकसभा के पांचों विधानसभा क्षेत्रों में वोटों की जनसांख्यिकी और परिस्थितियों पर प्राप्त जानकारी से पता चलता है कि मुख्य मुकाबला इंडी एलायंस के सुखदेव भगत और भाजपा के समीर उरांव के बीच है. यह भी स्पष्ट है कि चमरा लिंडा को इंडिया अलायंस के लिए वोट मिलने की संभावना है. इसके अलावा इससे यह भी अंदाजा लगाया जा सकता है कि राहुल गांधी की सभा की तुलना में नरेंद्र मोदी की सभा का मतदाताओं पर ज्यादा असर पड़ा. इस चुनाव का परिणाम अंततः इन पांच निर्वाचन क्षेत्रों में मतदाताओं की पसंद और प्राथमिकताओं पर निर्भर करेगा, लेकिन यह स्पष्ट है कि दोनों दलों की मजबूत उपस्थिति है और वे सीट के लिए सक्रिय रूप से प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं. अंतिम परिणाम इस क्षेत्र के राजनीतिक परिदृश्य और गतिशीलता का एक प्रमाण होगा. यह देखना दिलचस्प होगा कि कौन सा उम्मीदवार विजयी होता है.

 

 

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