रांची : लोकसभा चुनाव में 400 प्लस सीटें जीतने का दावा करने वाली भाजपा अकेले बहुमत के आंकड़े भी नहीं छू पाई. चुनाव परिणाम के बाद आरएसएस से जुड़ी पत्रिका ऑर्गेनाइजर ने भाजपा को आईना दिखाया है. ऑर्गेनाइजर ने कहा कि भाजपा के नेता और कार्यकर्ता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आभामंडल के आनंद में डूबे रह गये और उन्होंने आम जनता की आवाज को अनदेखा कर दिया. पत्रिका ने यह भी कहा कि भाजपा की जमीनी ताकत भले ही न हो लेकिन पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने चुनावी कार्य में सहयोग मांगने के लिए आरएसएस स्वयंसेवकों से संपर्क तक नहीं किया गया.
सोशल मीडिया में सेल्फी से नहीं मैदान में कड़ी मेहनत से हासिल होता है लक्ष्य
आरएसएस के आजीवन सदस्य रतन शारदा ने ऑर्गेनाइजर में लिखा कि 2024 के आम चुनाव के परिणाम अति आत्मविश्वास से भरे भाजपा कार्यकर्ताओं और कई नेताओं के लिए सच्चाई का सामना कराने वाले हैं. उन्हें इस बात का एहसास नहीं था कि प्रधानमंत्री मोदी का 400 से अधिक सीटों का आह्वान उनके लिए एक लक्ष्य था और विपक्ष के लिए एक चुनौती. भाजपा लोकसभा चुनाव में 240 सीटों के साथ बहुमत से दूर रह गयी है. लेकिन उसके नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को 293 सीटें मिली हैं. शारदा ने कहा कि सोशल मीडिया पर पोस्टर और सेल्फी साझा करने से नहीं, बल्कि मैदान पर कड़ी मेहनत से लक्ष्य हासिल किये जाते हैं.
अनावश्यक की राजनीति से खराब प्रदर्शन
उन्होंने भाजपा के खराब प्रदर्शन के पीछे अनावश्यक राजनीति को भी कई कारणों में से एक बताया. कहा, महाराष्ट्र अनावश्यक राजनीति और ऐसी जोड़तोड़ का एक प्रमुख उदाहरण है जिससे बचा जा सकता था. अजीत पवार के नेतृत्व वाला राकांपा गुट भाजपा में शामिल हो गया जबकि भाजपा और विभाजित शिवसेना (शिंदे गुट) के पास आरामदायक बहुमत था. शरद पवार दो-तीन साल में फीके पड़ जाते क्योंकि राकांपा अपने भाइयों के बीच अंदरूनी कलह से ही कमजोर हो जाती. शारदा ने कहा, यह गलत सलाह वाला कदम क्यों उठाया गया?
आरएसएस भाजपा की जमीनी ताकत नहीं है
शारदा ने कहा, ‘‘मैं स्पष्ट रूप से कहना चाहता हूं कि आरएसएस भाजपा की जमीनी ताकत नहीं है. असल में, दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा के अपने कार्यकर्ता हैं. उन्होंने कहा कि मतदाताओं तक पहुंचने, पार्टी का एजेंडा समझाने, साहित्य बांटने और वोटर कार्ड बांटने जैसे नियमित चुनावी कार्य पार्टी की जिम्मेदारी हैं. उन्होंने कहा, आरएसएस उन मुद्दों के बारे में लोगों के बीच जागरूकता बढ़ा रहा है जो उन्हें और राष्ट्र को प्रभावित करते हैं. 1973-1977 की अवधि को छोड़कर, आरएसएस ने सीधे राजनीति में भाग नहीं लिया.