रांची. झारखंड की राजधानी रांची में पिछले कुछ सालों से जमीन माफिया इस कदर हावी हो चुके है कि रिहायशी इलाकों की ज्यादातर महंगी जमीनों पर उनकी काली नजरें गड़ी हुई है. हाल यह है कि जमीन से जुड़े माफिया अब सामने ना आकर पर्दे के पीछे से अपना खेल दिखा रहे हैं. रांची में अब रवींद्रनाथ टैगोर के भाई हेमेंद्रनाथ टैगोर के वंशजों की जमीन पर कब्जा करने की कोशिश का खेल चल रहा है. राजधानी रांची में पिछले कुछ सालों से भूमि माफिया अपनी दबंगई से करोड़ों की कमाई करते नजर रहे हैं. ये माफिया कहीं खुलकर सामने आते हैं तो कहीं संपत्ति से जुड़े ही किसी दूसरे चेहरे को आगे कर अपना खेल खेल जाते हैं. राजधानी रांची में फिलहाल एक ऐसा ही मामला सामने आया है. रांची के कोकर में रवींद्रनाथ टैगोर के भाई हेमेंद्रनाथ टैगोर के वंशजों की जमीन पर भी अब काली नजर लग चुकी है.

मामला सदर थाना क्षेत्र के बड़गाई अंचल के खाता नंबर 161 के प्लाट नंबर 764 का है जिसकी 5.12 एकड़ जमीन पर अब दावेदारी का खेल शुरू हो चुका है. 1908 और 1929 में यह जमीन रवींद्रनाथ टैगोर के भाई हेमेंद्रनाथ टैगोर की बहू सरोजनी देवी ने खरीदी थी. 1932 के खतियान में भी सरोजनी देवी के इकलौते पोते हिरेंद्रनाथ टैगोर के नाम से यह संपत्ति है. वर्तमान में यह संपत्ति सरोजनी देवी के वंशज हिमेंद्रनाथ टैगोर के अधीन है. लेकिन परिजनों का आरोप है कि 1932 के खतियान में छेड़छाड़ कर किसी सुनंदो टैगोर ने इस पर अपनी दावेदार जताई है, जो कि बिलकुल गलत है.

रवींद्रनाथ टैगोर के परिवार ने लगाया बड़ा आरोप

हेमेंद्रनाथ टैगोर की वंशज और याचिकाकर्ता हिमेंद्रनाथ टैगोर की पत्नी नीता टैगोर ने बताया कि जिस व्यक्ति सुनंदो टैगोर ने जमीन पर दावेदारी की है वे लोग उसे जानते ही नहीं. उन्होंने बताया कि जमीन पर वे लोग ही कई सालों से मालगुजारी भरते आ रहे हैं. लेकिन किसी ने अचानक खतियान में नाम में छेड़छाड़ कर अपनी दावेदारी कर दी है.

कोर्ट पहुंचा मामला

हालांकि यह मामला हाईकोर्ट में भी पहुंच चुका है. दरअसल, जमीन के वर्तमान वंशज हिमेंद्रनाथ टैगोर ने जमीन की जमाबंदी रद्द करने के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की है. जिसपर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने प्रतिवादी और राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है. याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि 1932 के खतियान में नाम में छेड़छाड़ कर किसी सुनंदो टैगोर ने अपनी दावेदारी बताई है, जो कि गलत है. याचिकाकर्ता के अधिवक्ता राजेंद्र कृष्णा ने बताया कि अचरज की बात यह है कि जमीन की जमाबंदी को डीसीएलआर की ओर रद्द किया गया था. प्रार्थी के अधिवक्ता की मानें तो डीसीएलआर को जमाबंदी रद्द करने का अधिकार है ही नहीं. उन्होंने बताया कि खतियान में नाम में छेड़छाड़ कर जमीन पर दावेदारी पेश की गयी है.

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