नई दिल्ली। समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हो गई है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ इन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि इस मामले में सरकार का पक्ष सुना जाना चाहिए। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को अवगत कराया कि केंद्र ने इस मामले में याचिका दायर कर कोर्ट में इस मामले की विचारणीयता पर आपत्ति जताई है।

पांच जजों की संविधान पीठ इस पर सुनवाई कर रही है। इस संविधान पीठ में मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एसके कौल, जस्टिस एसआर भट, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल हैं। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि समलैंगिक विवाह पर संसद को फैसला लेने दीजिए। इस पर सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हम इंचार्ज हैं और हम तय करेंगे कि किस मामले पर सुनवाई करनी है और किस तरह करनी है। हम किसी को भी इजाजत नहीं देगे कि वह हमें बताएं कि सुनवाई करनी है या नहीं। सॉलिसिटर जनरल की दलील पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि हम आने वाले चरण में केंद्र की दलील भी सुनेंगे।

कोर्ट ने कहा कि हम इस बात से इनकार नहीं कर रहे हैं कि इस मामले में विधायिका का एंगल भी शामिल है…हमे इस मामले में कुछ तय करने के लिए सबकुछ तय करने की जरूरत नहीं है। एक याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में कहा है कि समलैंगिकों में एकजुटता के लिए शादी की जरूरत है। वहीं एक अन्य याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में कहा है कि समलैंगिक समुदाय के लोगों को उनके दिन प्रतिदिन के अधिकारों जैसे बैंक खाता खुलवाने आदि में परेशानी का सामना करना पड़ता है। समलैंगिकों के विवाह को कानूनी मान्यता देने से इस तरह की परेशानियां दूर होंगी।

सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि 2018 के धारा 377 के नवतेज मामले से आज तक हमारे समाज में समलैंगिक संबंधों को लेकर काफी स्वीकार्यता बढ़ी है और यह एक बड़ी उपलब्धि है। पीठ ने कहा कि एक विकसित भविष्य के लिए व्यापक मुद्दों को छोड़ा जा सकता है।

बता दें कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में 15 याचिकाएं दायर हुई हैं। जिन पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही है। हालांकि सोमवार को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में आवेदन देकर कहा कि शादी एक सामाजिक संस्था है और इस पर किसी नए अधिकार के सृजन या संबंध को मान्यता देने का अधिकार सिर्फ विधायिका के पास है और यह न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र में नहीं है।

केंद्र सरकार ने ये भी कहा कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली याचिकाएं सिर्फ शहरी अभिजात वर्ग के विचारों को दर्शाती हैं, इसे पूरे देश के नागरिकों का विचार नहीं माना जा सकता।

Share.
Exit mobile version