Joharlive Desk

नई दिल्ली । भारत और चीन गहन सैन्य और कूटनीतिक वार्ता के बावजूद लद्दाख क्षेत्र में जारी सीमा तनाव को कम नहीं कर पा रहे हैं। इसके अलावा वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के कुछ बिंदुओं पर सेना के पीछे हटने की प्रक्रिया लगभग रुकी हुई है। इस बात की जानकारी घटनाक्रम से संबंधित लोगों ने दी। 

यह गतिरोध तब हुआ है जब 14 जुलाई को शीर्ष भारतीय और चीनी सैन्य कमांडरों ने अपनी सेनाओं के पीछे हटने और नक्शे पर चर्चा करने को लेकर बातचीत की है। एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि क्षेत्र में जमीनी स्थिति अपरिवर्तित बनी हुई है, जहां दोनों सेनाओं ने अपने फॉरवर्ड और गहराई वाले क्षेत्रों में लगभग 100,000 सैनिकों को इकट्ठा किया हुआ है।

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार दूसरे अधिकारी ने कहा, ‘पैंगोंग त्सो और डेपसांग सहित एलएसी के साथ-साथ गतिरोध वाले क्षेत्रों में सैनिकों के पीछे हटने को लेकर कोई फॉरवर्ड मूवमेंट नहीं हुआ है। पूरी तरह से गतिरोध को खत्म करने में एक लंबा समय लग सकता है।’ उन्होंने कहा कि सर्दियों में गतिरोध बढ़ सकता है और भारतीय सशस्त्र बल इसके लिए तैयार हैं।

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने पिछले हफ्ते संकेत दिया था कि तनाव को हल करने के लिए बातचीत जटिल थी। अपने लद्दाख दौरे के दौरान उन्होंने कहा था कि वार्ता में प्रगति से सीमा विवाद को हल करने में मदद मिलनी चाहिए, लेकिन मैं इस बात की गारंटी नहीं दे सकता कि स्थिति को किस हद तक हल किया जाएगा। 14 जुलाई को वरिष्ठ भारतीय और चीनी कमांडरों के बीच अंतिम दौर की बैठक के बाद सेनाओं के पीछे हटने की प्रक्रिया में मुश्किल से प्रगति हुई है।

विशेषज्ञों का कहना है कि स्थिति जटिल है और कोई इसमें कोई त्वरित सुधार नहीं हो सकता। उत्तरी सेना के पूर्व कमांडर (सेनानिवृत्त) लेफ्टिनेंट जनरल डीएस हुड्डा ने कहा, ‘गेंद अब भारत के पाले में है। चीनी यथास्थिति से खुश होंगे क्योंकि वे पहले से ही भारतीय क्षेत्र में बैठे हुए हैं। सरकार को अब यह सोचने की जरूरत है कि गतिरोध खत्म करने के लिए अब आगे क्या करना है।’

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