कोलकाता: सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल स्कूल भर्ती घोटाले के मामले में तृणमूल कांग्रेस के नेता अभिषेक बनर्जी और उनकी पत्नी रुजिरा बनर्जी द्वारा प्रवर्तन निदेशालय के समन को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया. यह याचिका जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की अध्यक्षता वाली बेंच के समक्ष दायर की गई थी. जिसमें कहा गया था कि ईडी को नई दिल्ली में उनकी पूछताछ की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए और यह पूछताछ उनके कोलकाता स्थित निवास पर की जानी चाहिए.
कोर्ट ने बताए कानून
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद 20(3) के तहत किसी आरोपी को समन जारी करने के चरण में संरक्षण का दावा नहीं किया जा सकता. कोर्ट ने यह भी कहा कि पीएमएलए (प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट) एक विशेष अधिनियम है और सीआरपीसी (क्रिमिनल प्रोसिजर कोड) जैसे अन्य कानून इसके तहत लागू नहीं होते. अभिषेक बनर्जी और रुजिरा बनर्जी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील दी कि समन जारी करने के लिए कोई निर्धारित प्रक्रिया नहीं है और जांच की क्षेत्रीयता के बारे में कानून स्पष्ट नहीं है. उन्होंने यह भी तर्क किया कि रुजिरा के महिला होने के नाते, उनकी पूछताछ उनके निवास स्थान पर की जानी चाहिए.
चुनौती में कोई वैध तथ्य नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पीएमएलए की धारा 50 के तहत जारी समन को चुनौती देने में कोई वैध तथ्य नहीं पाए गए. कोर्ट ने उल्लेख किया कि धारा 50 और सीआरपीसी की धारा 160 में विसंगतियां हैं, और इसलिए पीएमएलए के तहत कार्यवाही पर सीआरपीसी लागू नहीं होती. कोर्ट ने यह भी कहा कि धारा 50 लिंग-तटस्थ है और महिलाओं के पक्ष में विशेष अपवाद नहीं बना सकती. सुप्रीम कोर्ट ने 2022 के अपने फैसले का हवाला देते हुए कहा कि पीएमएलए के तहत दर्ज किए गए बयान संविधान के अनुच्छेद 20(3) या अनुच्छेद 21 के अंतर्गत नहीं आते और ये सबूत के रूप में स्वीकार्य हैं. इससे स्पष्ट हुआ कि समन जारी करने के दौरान अनुच्छेद 20(3) के तहत संरक्षण का दावा नहीं किया जा सकता है, क्योंकि यह ‘साक्षी देने की बाध्यता’ नहीं है.