Joharlive Desk
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को पत्रकार अर्नब गोस्वामी के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने के 2018 के मामले में महाराष्ट्र सरकार पर सवाल उठाए और कहा कि इस तरह से किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत आजादी पर बंदिश लगाया जाना न्याय का मखौल होगा। इसके साथ ही अदालत ने अर्नब गोस्वामी और अन्य आरोपियों को अंतरिम जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया है।
न्यायाधीश चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि अर्नब गोस्वामी और दो अन्य आरोपियों को 50 हजार रुपये के मुचलके पर अंतरिम जमानत पर रिहा किया जाए। पीठ ने पुलिस कमिश्नर को निर्देश दिया है कि आदेश का तत्काल पालन किया जाए। न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड और न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी की पीठ ने कहा कि अगर राज्य सरकारें लोगों को निशाना बनाती हैं तो उन्हें इस बात का अहसास होना चाहिए कि नागरिकों की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए उच्चतम न्यायालय है। शीर्ष अदालत ने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि राज्य सरकारें कुछ लोगों को विचारधारा और मत भिन्नता के आधार पर निशाना बना रही हैं।
अर्नब गोस्वामी की अंतरिम जमानत की याचिका पर सुनवाई करते हुए पीठ ने कहा, ‘हम देख रहे हैं कि एक के बाद एक ऐसा मामला है जिसमें उच्च न्यायालय जमानत नहीं दे रहे हैं और वे लोगों की स्वतंत्रता, निजी स्वतंत्रता की रक्षा करने में विफल हो रहे हैं।’
न्यायालय ने राज्य सरकार से जानना चाहा कि क्या गोस्वामी को हिरासत में लेकर उनसे पूछताछ की कोई जरूरत थी क्योंकि यह व्यक्तिगत आजादी से संबंधित मामला है। पीठ ने टिप्पणी की कि भारतीय लोकतंत्र असाधारण तरीके से लचीला है और महाराष्ट्र सरकार को इन सबको (टीवी पर अर्नब के ताने) नजरअंदाज करना चाहिए।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ‘उनकी जो भी विचारधारा हो, कम से कम मैं तो उनका चैनल नहीं देखता लेकिन अगर सांविधानिक न्यायालय आज इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगा तो हम निर्विवाद रूप से बर्बादी की ओर बढ़ रहे होंगे।’ पीठ ने कहा, ‘सवाल यह है कि क्या आप इन आरोपों के कारण व्यक्ति को उसकी व्यक्तिगत आजादी से वंचित कर देंगे।’
न्यायालय ने कहा, ‘अगर सरकार इस आधार पर लोगों को निशाना बनाएंगी…आप टेलीविजन चैनल को नापसंद कर सकते हैं लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए।’ पीठ ने टिप्पणी की कि मान लीजिए की प्राथमिकी ‘पूरी तरह सच’ है लेकिन यह जांच का विषय है।
राज्य सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल से पीठ ने सवाल किया, ‘क्या धन का भुगतान नहीं करना, आत्महत्या के लिए उकसाना है? यह न्याय का उपहास होगा अगर प्राथमिकी लंबित होने के दौरान जमानत नहीं दी जाती है।’
न्यायालय ने कहा, ‘ए, बी को पैसे का भुगतान नहीं करता है और क्या यह आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला है? अगर उच्च न्यायालय इस तरह के मामलों में कार्यवाही नहीं करेंगे तो व्यक्तिगत स्वतंत्रता पूरी तरह नष्ट हो जाएगी। हम इसे लेकर बहुत ज्यादा चिंतित हैं। अगर हम इस तरह के मामलों में कार्रवाई नहीं करेंगे तो यह बहुत ही परेशानी वाली बात होगी।’
न्यायमूर्ति चंद्रचूड ने कहा कि न्यायालयों की उनके फैसलों के लिए तीखी आलोचना हो रही है और ‘मैं अक्सर अपने लॉ क्लर्क से पूछता हूं और वे कहते हैं कि सर कृपा करके ट्विट्स मत देखें।’ गोस्वामी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने उनके और चैनल के खिलाफ दर्ज तमाम मामलों का जिक्र किया और आरोप लगाया कि महाराष्ट्र सरकार उन्हें निशाना बना रही है।
साल्वे ने कहा, ‘यह सामान्य मामला नहीं था और सांविधानिक न्यायालय होने के नाते बंबई उच्च न्यायालय को इन घटनाओं का संज्ञान लेना चाहिए था। क्या यह ऐसा मामला है जिसमे अर्नब गोस्वामी को खतरनाक अपराधिकयों के साथ तलोजा जेल में रखा जाए।’
उन्होंने कहा, ‘मैं अनुरोध करूंगा कि यह मामला सीबीआई को सौंप दिया जाए और अगर वह दोषी हैं तो उन्हें सजा दीजिए। अगर व्यक्ति को अंतरिम जमानत दे दी जाए तो क्या होगा।’ सिब्बल ने इस मामले के तथ्यों का हवाला दिया और कहा कि इस मामले में की गई विस्तृत जांच शीर्ष अदालत के सामने नहीं है और अगर वह इस समय हस्तक्षेप करेगी तो इससे एक खतरनाक परंपरा स्थापित होगी।
राज्य की ओर से ही एक अन्य वरिष्ठ अधिवक्ता अमित देसाई ने कहा कि यह ऐसा मामला नहीं है जिसमें न्यायलय को अंतरिम स्तर पर जमानत देने के लिए अपने असाधारण अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल करना चाहिए। उन्होंने कहा कि आपराधिक मामले की जांच करने की राज्य की क्षमता का सम्मान होना चाहिए।
इस मामले में भोजन अवकाश के बाद बहस जारी रहेगी। शीर्ष अदालत 2018 के एक इंटीरियर डिजायनर और उनकी मां को आत्महत्या के लिए कथित रूप से उकसाने के मामले में अंतरिम जमानत के लिए गोस्वामी की अपील पर सुनवाई कर रही है।