नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) को अल्पसंख्यक दर्जा देने के मुद्दे पर महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है. कोर्ट ने यह मामला एक नई बेंच को सौंप दिया है, जो इस बात का फैसला करेगी कि एएमयू को संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक दर्जा दिया जाए या नहीं. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने 4-3 के बहुमत से यह फैसला किया, जिसमें चार जजों ने एकमत होकर यह मामला नई बेंच को भेजने का समर्थन किया, जबकि तीन जजों की राय जुदा थी. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार, चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस जे. बी. पारदीवाला ने इस मुद्दे पर समान राय व्यक्त की, जबकि जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने अलग राय दी। इसके साथ ही कोर्ट ने 1967 के उस फैसले को भी रद्द कर दिया, जिसमें एएमयू को अल्पसंख्यक दर्जा देने से इंकार किया गया था. यह मामला 1981 में किए गए एएमयू अधिनियम के संशोधन से जुड़ा है, जिसने विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक दर्जा देने का प्रावधान किया था. सुप्रीम कोर्ट ने पहले कहा था कि यह संशोधन ‘आधे-अधूरे मन से’ किया गया था और एएमयू को 1951 से पहले की स्थिति में नहीं बहाल किया गया था। कोर्ट ने यह भी कहा कि 1951 का संशोधन विश्वविद्यालय में मुस्लिम छात्रों के लिए अनिवार्य धार्मिक शिक्षा को समाप्त कर देता है. इस फैसले से जुड़ा एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ 10 नवंबर को अपने पद से सेवानिवृत्त हो रहे हैं, और यह उनके कार्यकाल का आखिरी दिन है। इस फैसले को लेकर उम्मीद जताई जा रही है कि नई बेंच जल्द ही इस पर सुनवाई करेगी और अंतिम निर्णय लिया जाएगा.

 

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