नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया है, जिसमें कहा गया था कि चाइल्ड पॉर्नोग्राफी (बाल अश्लील सामग्री) देखना और डाउनलोड करना पॉक्सो अधिनियम और आईटी कानून के तहत अपराध नहीं है. प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने स्पष्ट किया कि चाइल्ड पॉर्न देखना और डाउनलोड करना कानूनी रूप से अपराध है.
मद्रास हाईकोर्ट ने जनवरी में एक 28 वर्षीय व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी थी, जो अपने मोबाइल पर बच्चों से जुड़ी अश्लील सामग्री डाउनलोड करने का आरोपी था. कोर्ट ने इस पर टिप्पणी की थी कि समाज को बच्चों को सजा देने के बजाय उन्हें शिक्षित करने की आवश्यकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता संगठनों की पैरवी करते हुए कहा कि हाईकोर्ट का आदेश कानून के खिलाफ है. वरिष्ठ अधिवक्ता एच एस फुल्का ने अदालत में बताया कि यह निर्णय समाज में भ्रम पैदा कर सकता है. अदालत ने इस विषय पर दिशा-निर्देश भी जारी किए हैं, ताकि चाइल्ड पॉर्नोग्राफी के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जा सके. इस फैसले ने यह सुनिश्चित किया है कि चाइल्ड पॉर्नोग्राफी के मामलों में कोई भी लापरवाही नहीं बरती जाएगी और यह स्पष्ट किया गया है कि ऐसे अपराधों के लिए सख्त कानूनी प्रावधान मौजूद हैं.
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