नई दिल्ली : भारत में कई प्रकार की बीमारियों का खतरा काफी तेजी से बढ़ा है. डायबिटीज और हार्ट की समस्याओं के अलावा यहां लोगों में कई प्रकार की न्यूरोकॉग्नेटिव समस्याओं का जोखिम भी काफी अधिक देखा जा रहा है. न्यूरोकॉग्नेटिव विकार, तंत्रिका-संज्ञानात्मक विकारों का समूह हैं, इसमें मानसिक कार्यप्रणाली में कमी आने की समस्या हो सकती है. इन विकारों के कारण दैनिक कार्य करने की क्षमता में भी कमी आने का खतरा हो सकता है. हालिया रिपोर्टस से पता चलता है कि भारत में इस प्रकार के रोगों का खतरा बढ़ता जा रहा है.
जर्नल पल्स वन में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार भारत में डिमेंशिया जैसे विकारों की व्यापकता पहले की तुलना में काफी अधिक हो गई है. अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने भारत में डिमेंशिया से पीड़ित लोगों की संख्या की जांच की और यह पता लगाने का प्रयास किया कि देश में 60 वर्ष और उससे अधिक उम्र के कितने लोगों को न्यूरोकॉग्निटिव डिसऑर्डर है? यहां जानना जरूरी है कि डिमेंशिया कई प्रकार की न्यूरोकॉग्नेटिव समस्याओं का संगठित रूप होता है, अल्जाइमर रोग को डिमेंशिया के प्रमुख कारकों में से एक माना जाता है.
शोध में पाया गया है कि भारत में 60 वर्ष की आयु के लगभग 24 मिलियन (2.4 करोड़) लोगों को माइल्ड और 9.9 मिलियन (99 लाख) लोगों को गंभीर प्रकार की न्यूरोकॉग्नेटिव समस्याएं हो सकती हैं.
स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, 60 वर्ष की आयु वाले लगभग 5 में से 1 भारतीय में न्यूरोकॉग्नेटिव विकारों का खतरा हो सकता है. समय के साथ इसके जोखिम और भी बढ़ते जा रहे हैं, जिसको लेकर सभी लोगों को अलर्ट रहने और कम उम्र से ही बचाव के उपाय करते रहने की आवश्यकता है. उम्र बढ़ने के साथ-साथ इस प्रकार की समस्याओं का जोखिम अधिक हो सकता है. इससे न सिर्फ क्वालिटी ऑफ लाइफ पर नकारात्मक असर हो सकता है, साथ ही मेडिकल क्षेत्र पर इन विकारों का बोझ भी बढ़ता जा रहा है.
न्यूरोकॉग्नेटिव विकारों के बारे में जानिए
स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, न्यूरोकॉग्नेटिव विकार, अंतर्निहित मस्तिष्क की समस्याओं के कारण अनुभूति-सोच में परिवर्तन की समस्या है. अध्ययन के नतीजे बताते हैं कि भारत में 59 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में कई अन्य देशों में इसी आयुवर्ग की तुलना में, कई प्रकार की मस्तिष्क स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा अधिक हो सकता है.
तुलनात्मक रूप से देखा जाए तो ब्रिटेन में 60 वर्ष से अधिक उम्र के 14.5 मिलियन (1.45 करोड़) लोग डिमेंशिया के शिकार हैं, यानी कि ये दर लगभग 6.5% है. जबकि नवीनतम अध्ययन के अनुसार, भारत में डिमेंशिया दर लगभग 9.5% है.
अध्ययन में क्या पता चला?
अध्ययन के दौरान प्रतिभागियों का संज्ञानात्मक परीक्षण किया गया. उनके परिवार के सदस्यों को उनकी रोजमर्रा की गतिविधियों में बदलाव को रिपोर्ट करने के लिए कहा गया. उदाहरण के लिए यदि प्रतिभागियों की याददाश्त में मामूली परिवर्तन हुआ है लेकिन रोजमर्रा की गतिविधि प्रभावित नहीं हुई है तो इसका मतलब यह है कि उन्हें हल्के स्तर की संज्ञानात्मक हानि की समस्या है. अध्ययन के दौरान पाया गया कि भारत में 60 से अधिक आयु के लोग बड़ी संख्या में इस प्रकार के विकारों के शिकार हैं. इसके जड़ वयस्कावस्था से शुरू हो सकते हैं.
डिमेंशिया की समस्या हो सकती है गंभीर
स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, अल्जाइमर रोग-डिमेंशिया की स्थिति गंभीर हो सकती है. इसके कारण रोगी को स्मरण शक्ति में कमजोरी, काम पर ध्यान बनाकर रखने में समस्या, दैनिक जीवन के कार्यों को करने में कठिनाई होने, समय और स्थान को लेकर भ्रमित होने और मनोदशा में बदलाव की दिक्कत हो सकती है. शोधकर्ताओं ने पाया कि लाइफस्टाइल और आहार में कुछ प्रकार के बदलाव, शराब-धूम्रपान से कम उम्र में ही दूरी बनाने से मस्तिष्क विकारों की इन समस्याओं को कम करने में मदद मिल सकती है.
स्टैनफोर्ड हेल्थ केयर की रिपोर्ट में बताया गया है कि कम उम्र से ही अगर नियमित व्यायाम, ग्लूकोज के स्तर पर नियंत्रण रखने और लाइफस्टाइल को ठीक रखने पर ध्यान दे लिया जाए तो कई प्रकार के न्यूरोकॉग्नेटिव विकारों के खतरे कम कम करने में मदद मिल सकती है.
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