रांची : झारखंड में आसमानी कहर भी बरप रहा है. रविवार को पलामू में ठनका गिरने से चार लोगों की मौत हो गई थी. हाल यह है कि पिछले आठ साल में ठनका गिरने से झारखंड में 2100 लोगों की मौत हो चुकी है.
पांच जिले बेहद खतरनाक
झारखंड में रांची, खूंटी, हजारीबाग, सिमडेगा और पश्चिमी सिंहभूम ठनका के लिए सबसे खतरनाक माने गये हैं. पांचों जिले थंडरिंग जोन में हैं. इन जिलों में ठनका गिरे, तो जान आफत में आ सकती है. थंडरिंग जोन की पहली श्रेणी में हजारीबाग है.
दो तरह के हैं थंडरिंग जोन
झारखंड में दो तरह के थंडरिंग जोन हैं. इसमें लो क्लाउड (कम ऊंचाई के बादल) और माइक्रोस्पेरिक थंडरिंग शामिल हैं. लो क्लाउड थंडरिंग धरातल से 80 किलोमीटर तक की ऊंचाई पर होती है, जबकि माइक्रोस्पेरिक थंडरिंग की गतिविधि धरातल से 80 किलोमीटर से अधिक ऊंचाई पर होती है.
मुआवजा में 11 करोड़ खर्च
राज्य में अब तक ठनका से बचाव के माकुल इंतजाम भी नहीं किए गए हैं. ठनका से हुई मौत पर मुआवजा देने के एवज में सालाना लगभग 11 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं. ठनका से मौत होने पर मृत व्यक्ति के परिजन को चार लाख रुपये देने का प्रावधान है. जानवर की मौत पर 30 हजार रुपए, घर के नुकसान पर 95500 रुपए पूर्ण अपंग होने पर चार लाख रुपए और 50 फीसदी अपंग होने पर दो लाख रुपए मुआवजा देने का प्रावधान है.
धरी की धरी रह गईं योजनाएं
सरकार ने ठनका से बचाव के लिए कई योजनाएं बनायी, लेकिन योजनाएं ठनका प्रभावित इलाकों में धरातल पर नहीं उतर पायीं, सिर्फ देवघर में छह और रांची के नामकुम में एक तड़ित रोधक यंत्र ही लगाया जा सका. योजना के तहत रांची के पहाड़ी मंदिर और जगन्नाथपुर मंदिर में भी तड़ित रोधक यंत्र लगाया जाना था. वह भी नहीं लग पाया 2016 के बाद से अब तक प्राधिकार की बैठक भी नहीं हो पाई है, वहीं जिला आपदा प्राधिकार भी काम नहीं कर रहा है. वर्ष 2014-15 में जिला आपदा प्रबंधन पदाधिकारियों की भी नियुक्ति भी की गई थी. संविदा के आधार पर हर जिले में जिला आपदा प्रबंधन पदाधिकारी की तैनाती की गई थी, लेकिन कॉन्ट्रैक्ट रिन्वल नहीं होने के कारण यह योजना भी सफल नहीं हो पाई.
भयावह आंकड़े
2014-15 में 144 मौत
2015-16 में 210 मौत
2016-17 में 265 मौत
2017-18 में 256 मौत
2018-19 में 261 मौत
2019-20 में 283 मौत
2020-21 में 322 मौत
2021-22 व 2022-23 में 350 मौत