झारखंड

कल्पना सोरेन को सीता की बेटियों ने दिया जवाब, अपनी वास्तविकता छिपाने के लिए मेरे पिता के नाम का इस्तेमाल न करें

रांची: कल्पना सोरेन के पोस्ट पर स्व दुर्गा सोरेन और सीता सोरेन की दोनों बेटियों ने जवाब दिया है. बेटी राजश्री सोरेन ने पोस्ट के जवाब में लिखा है कि मेरे पिता अपने लोगों के संरक्षक थे. उन्होंने हमेशा अन्याय के खिलाफ लड़ाई लड़ी. वह लोगों की आवाज़ थे. उन्होंने झामुमो को मजबूत बनाने में अपना खून-पसीना बहाया. कृपया अपनी वास्तविकता छिपाने के लिए मेरे पिता के नाम का उपयोग न करें. वहीं दुर्गा सोरेन की दूसरी बेटी विजयश्री सोरेन ने लिखा कि मुझे पता है पापा आप जहां भी है आपका प्यार और आशीर्वाद हमेशा हमारे साथ है. झारखंड को झुकाना नहीं बचाना है. वहीं पोस्ट में उसने लिखा कि मां सीता सोरेन के 14 साल के संघर्ष और चुनौती का अंत हो गया. बिना झुके झारखंड की भलाई के लिए काम करने का निर्णय लिया है. अपने पिता दुर्गा सोरेन के बताए रास्ते पर चलकर अन्याय के खिलाफ जंग जारी रहेगी. बता दें कि इससे पहले हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन ने एक्स पर पोस्ट लिखा था.

क्या लिखा था कल्पना सोरेन ने एक्स पर

हेमन्त जी के लिए स्वर्गीय दुर्गा दा, सिर्फ बड़े भाई नहीं बल्कि पिता तुल्य अभिभावक के रूप में रहे. 2006 में ब्याह के उपरांत इस बलिदानी परिवार का हिस्सा बनने के बाद मैंने हेमन्त जी का अपने बड़े भाई के प्रति आदर तथा समर्पण और स्वर्गीय दुर्गा दा का हेमन्त जी के प्रति प्यार देखा. हेमन्त जी राजनीति में नहीं आना चाहते थे परंतु दुर्गा दादा की असामयिक मृत्यु और आदरणीय बाबा के स्वास्थ्य को देखते हुए उन्हें राजनीति के क्षेत्र में आना पड़ा. हेमन्त जी ने राजनीति को नहीं बल्कि राजनीति ने हेमन्त जी को चुन लिया. जिन्होंने आर्किटेक्ट बनने की ठानी थी उनके ऊपर – अब झामुमो, आदरणीय बाबा और स्व दुर्गा दा की विरासत तथा संघर्ष को आगे बढ़ाने की ज़िम्मेदारी थी.

कल्पना सोरेन ने आगे लिखा था कि मुक्ति मोर्चा का जन्म समाजवाद और वामपंथी विचारधारा के समन्वय से हुआ था. झामुमो आज झारखण्ड में आदिवासियों, दलितों, पिछड़ों एवं अल्पसंख्यकों समेत सभी गरीबों, वंचितों और शोषितों की विश्वसनीय आवाज बन कर आगे बढ़ रही है. आदरणीय बाबा एवं स्व दुर्गा दा के संघर्षों और जो लड़ाई उन्होंने पूंजीपतियों-सामंतवादियों के खिलाफ लड़ी थी उन्हीं ताकतों से लड़ते हुए आज हेमन्त जी जेल चले गये. वे झुके नहीं. उन्होंने एक झारखण्डी की तरह लड़ने का रास्ता चुना. वैसे भी हमारे आदिवासी समाज ने कभी पीठ दिखाकर, समझौता कर, आगे बढ़ना सीखा ही नहीं है. झारखण्डी के DNA में ही नहीं है झुक जाना. सच हम नहीं, सच तुम नहीं, सच है सतत संघर्ष ही.

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