Joharlive Team
रांची। महिलाओं के उत्थान के लिए राजधानी रांची में शुरू की गई पिंक ऑटो का लॉकडाउन में हाल बेहाल हो चुका है। इस दौरान कई ऐसी कहानियां हैं जो लॉकडाउन में बदहाली को दिखा रही हैं। रांची के कडरू के शिखा शालिनी मिंज जो किराए के मकान में रहकर पिंक ऑटो चलाती हैं। शिखा अपने पति के साथ रहती हैं। लॉकडाउन की वजह से पति के काम भी छूट गए हैं।
शिखा अपने तीन महीने के बेटी को साथ में लेकर ऑटो चलाती हैं ताकि परिवार का भरण पोषण हो सके। घर की दहलीज को लांघ कर शिखा आत्मनिर्भर बनी हैं।
राजधानी रांची में महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए पिंक ऑटो की शुरुआत की गई थी। तकरीबन 40 की संख्या में लगभग अरगोड़ा चैक से सुजाता चैक तक पिंक ऑटो की शुरुआत की गई। इस ऑटो को महिला ही चलाती हैं और इस पर सवारी भी महिला ही होती है, लेकिन लॉकडाउन की वजह से इन महिला पिंक ऑटो चालकों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा है।
इसी लॉकडाउन के दौरान मई महीने में शिखा ने एक बच्ची को जन्म दिया। बच्ची के जन्म के समय भी शिखा ने काफी कर्ज लिए ताकि बच्ची का सुरक्षित जन्म हो सके, उसके बाद परिवार के ऊपर आर्थिक मुसीबत बढ़ता ही चला गया यानी कि खर्च बढ़ता गया और मुसीबत भी बढ़ती गई। शिखा अब 2 से 3 हो चुकी हैं। इसलिए खर्च भी बढ़ रहे थे बच्ची के लालन पालन के लिए उन्हें पैसे की काफी किल्लत हो गई थी ऐसे में उन्होंने फिर से ऑटो चलाने की शुरुआत कर दी।
शिखा सुबह उठकर सबसे पहले अपने घर का सारा काम काज करके फिर 9रू00 बजे के करीब ऑटो लेकर सड़क पर चलाने के लिए निकलती हैं। अपने साथ-साथ बच्ची को भी तैयार करके वे ऑटो स्टार्ट कर कमाने के लिए निकल पड़ती हैं।
हालांकि घर के कामकाज में थोड़ी मदद पति भी करते हैं, लेकिन आर्थिक रूप से सारी जिम्मेदारी उनके कंधों पर ही है। शिखा ऑटो चलाने के साथ-साथ फिनायल की बोतल भी बेचने का काम करती हैं। ऑटो में ही पीछे एक डलियां में फिनायल की बोतल लेकर चलती है। यात्रियों के साथ-साथ अपने मोहल्ले और आसपास के दुकानों में भी शिखा इस फिनाइल की बोतल को पहुंचाती है। इससे भी उनको आमदनी होता है जिससे परिवार चलाने में मदद मिलती है।
शिखा की मानें तो पहले ऑटो चलाकर अच्छी आमदनी होती थी, लेकिन जब से लॉकडाउन लागू हुआ है। तब से पैसेंजर ही नहीं मिल पा रहे और कोरोना संक्रमण से बचाव को लेकर जो जिला प्रसाशन के द्वारा गाइडलाइंस जारी किए गए हैं, उसके तहत सिर्फ 2 यात्रियों को लेकर चलना है।
ऐसे में यात्री उतने पैसे देने को तैयार भी नहीं होते और यात्री मिलते भी नहीं। ऐसे में पेट्रोल का खर्च निकाल पाना भी काफी मुश्किल हो जा रहा है, लेकिन फिर भी कोई रास्ता नहीं है। इसलिए अपनी बच्ची को पीठ पर टांग कर वह पूरे दिन ऑटो चलाती है ताकि कुछ पैसे हो जिससे घर का खर्च चल सके।
हालांकि, पिंक ऑटो संघ की अध्यक्ष हीरा देवी की मानें तो यह सिर्फ शिखा की ही परेशानी नहीं है कि आर्थिक तंगी से जूझ रही है, बल्कि अब 40 में से 10-15 पिंक ऑटो सड़क पर चल रहे हैं। क्योंकि अब यात्री ही नहीं मिल पा रहे हैं। लोगों को पेट्रोल का खर्च भी नहीं निकल पा रहा है जो महिलाएं पिंक ऑटो चलाया करती थी, उन्होंने अब अपना व्यवसाय बदल रखा है।
कोई सब्जी बेचने का काम कर रही है तो कोई रेजा कुली तो कोई दाई का काम शुरू कर दी है। कई पिंक ऑटो चालक ऑटो बेचने को भी मजबूर हो चुकी है, क्योंकि ऑटो की किस्त लगातार जारी है, लेकिन आमदनी बंद हो चुका है। ऐसे में वह बैंक का कर्ज कैसे चुकता कर पाएगी।
वही ऑटो पर सवार यात्रियों की मानें तो जबसे पिंक ऑटो की शुरुआत हुई है, तब से यात्रा सुरक्षित महसूस करती हैं। महिला चालक होने की वजह से रात को भी घर लौटने में दफ्तर से कोई परेशानी नहीं होती है, अगर ज्यादा लेट होती है तो उतने ही किराए पर यदि दिया घर तक पहुंचाती हैं। बहुत ही हेल्पफुल नेचर की सभी पिंक ऑटो की चमक हैं। अन्य भी कोई अगर सहायता लेनी होती है तो सभी देने को तैयार रहती है।
सबसे बड़ी बात है कि ऑटो में सिर्फ लेडीस बैठती है, इसलिए कोई और खतरा महसूस नहीं होता है। साथ ही यह महिलाओं के लिए एक प्रेरणा भी है कि जो महिलाएं घर की दहलीज को नहीं लगती थी। अब वह ऑटो भी चला रही है और अपने आप को आत्मनिर्भर बना रही है इससे हम सभी को भी सीख मिलती है कि कोई भी काम महिला कर सकती है।