JoharLive Team
अश्विन शुक्लपक्ष अष्ठमी तिथि 6 अक्टूबर रविवार को दुर्गापूजा के आठवें दिन नव दुर्गाओं में आठवीं शक्ति माँ महागौरी की उपासना का विधान है। देवी महागौरी राहु ग्रह को नियंत्रित करती हैं। राहु की महादशा वाले जातक को इनकी उपासना अवश्य करनी चाहिए। महागौरी का ध्यान, पूजन-आराधना भक्तों के लिए सर्व कल्याणकारी है। इनकी उपासना से असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं। इनकी पूजा से पूर्वसंचित पाप नष्ट हो जाते हैं। माँ गौरी की उपासना से मनुष्य पवित्र होकर अक्षय पुण्यों को प्राप्त करता है। माँ गौरी का स्वरुप अत्यंत शांत है, इनका वर्ण श्वेत है जिसकी उपमा शंख, चंद्र और कुंद के फूल से दी गई है। इनकी आयु आठ वर्ष की है- ‘अष्टवर्षा भवेद् गौरी।’ इनकी समस्त वस्त्र एवं आभूषण भी श्वेत वर्ण के हैं। महागौरी की चार भुजाएँ हैं। जिसमें अभय, मुद्रा त्रिशूल ,डमरू और वर-मुद्रा धारण की हुई हैं। इनका वाहन वृषभ है। महागौरी रूप में देवी करूणामयी, स्नेहमयी, शांत और मृदुल दिखती हैं देवी की इस स्वरुप की ऋषि और देवगन इस मन्त्र से वंदना करते हैं –
“सर्वमंगल मंग्ल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके.
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोस्तुते..”
अष्टमी की पूजा में माँ गौरी को नारियल का भोग लगाये इससे संतान संबंधी बाधा दूर होती है। महाष्टमी को माँ भवानी की पूजन के बाद इस मन्त्र का जाप करें –
या देवी सर्वभूतेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।