नवरात्रि का छठा दिन : अश्विन शुक्लपक्ष षष्ठी तिथि 4 अक्टूबर शुक्रवार को नव दुर्गाओं में छठी देवी माँ कात्यायनी की उपासना होती है। माता कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं। माँ कात्यायनी का यह रूप वृहस्पति ग्रह का प्रतिक है इनकी पूजा से वृहस्पति ग्रह को शांत किया जा सकता है। देवी कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत चमकीला और भास्वर है, इनकी चार भुजाएँ हैं जो अभयमुद्रा, वरमुद्रा, तलवार और कमल-पुष्प से सुशोभित है। इनका वाहन सिंह है। महिषासुर दानव को मारने के लिए त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु, महेश अपने तेज का अंश देकर महिषासुर के विनाश के लिए जिस देवी को उत्पन्न किया महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इस देवी की पूजा की इसी से यह कात्यायनी कहलाई। कात्यायनी की भक्ति और उपासना से मनुष्य को अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है। इस दिन माँ के भोग के रूप में शहद अपर्पित करना चाहिए जिससे आकर्षण शक्ति बढ़ती है।
जिन कुमारी कन्याओ के विवाह मे विलम्ब हो रहा हो, उन्हे इस दिन माँ कात्यायनी की उपासना अवश्य करनी चाहिए, जिससे उन्हें मनचाहा वर की प्राप्ति होती है।
कन्याएं विवाह के लिये कात्यायनी मन्त्र का जप करें-
ॐ कात्यायनी महामाये महायोगिन्यधीश्वरि ।
नंदगोपसुतम् देवि पतिम् मे कुरुते नम:॥
नवरात्रि में छठे दिन भक्तों को इस मन्त्र का जाप करना चाहिए।
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
आचार्य प्रणव मिश्रा
आचार्यकुलम ,अरगोड़ा, रांची
9031249105