JoharLive Team
रांची। निमित्त संस्था की सचिव डॉ निकिता सिन्हा ने कहा कि 9 फरवरी को रांची जिले के 137 जोड़ों के लिए सामूहिक विवाह समारोह का आयोजन होगा। सिन्हा गुरुवार को प्रेस क्लब में संवाददाता सम्मेलन में बोल रही थीं।
उन्होंने कहा कि कार्यक्रम मोरहाबादी स्थित सीएसओआई क्लब में होगा। कार्यक्रम में हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड और लायंस क्लब का सहयोग लिया गया है। 137 जोड़े लिव इन रिलेशनशिप में रहते हैं। उनका विवाह कराया जा रहा है। उन्होंने बताया कि भारतीय संस्कृति और परंपराओं की अनेक तह हैं। अमूमन किसी भी व्यक्ति के लिए सभी तह को जान पाना संभव नहीं होता। यह केवल खान-पान वेशभूषाओं के स्तर पर ही नहीं होता बल्कि विवाह और मृत्यु जैसी परंपराओं में भी अनेक विविधतायें देखने को मिलती हैं। जैसा कि हम जानते हैं कि हमारे देश की संस्कृति मूल्य में किसी पुरुष और महिला को बिना वैवाहिक बंधन के एकसाथ रहने की अनुमति नहीं है। इसके विपरीत ढुकु ऐसी एक परंपरा है, जो विवाह से संबंधित है । यह झारखंड के अनेक जिलों में प्रचलित है।
झारखंड के कई जिलों के आदिवासी समुदायों में वर्षों से पीढ़ियों से लिव इन रिलेशनशिप में रहने की प्रथा रही है। आदिवासी सामाजिक ताने-बाने में स्त्रियों और पुरुषों को बराबर का दर्जा प्राप्त है । इसी अधिकार से उन्हें अपना जीवनसाथी चुनने का पूर्ण अधिकार है। महिला बिना शादी किए अपने पुरुष समकक्ष के साथ रहती है, यह कोई असामान्य बात नहीं है और समाज में भी यह पूर्ण रूप से स्वीकृत है। उन्होंने कहा कि सामाजिक रूप से स्वीकृत होते हुए लिव इन संबंधों को बहुत सम्मानजनक दृष्टि से नहीं देखा जाता है। जब एक पुरुष किसी महिला के साथ रहना शुरू कर देता है तो आमतौर पर इन महिलाओं को ढुकु कहा जाता है। आमतौर पर इन महिलाओं की कोई कानूनी स्थिति नहीं होती है। वह बच्चे के रखरखाव के लिए दावा नहीं कर सकती। अक्सर ऐसे मामले में महिलाओं की आर्थिक स्थिति बिगड़ जाती है। मान्यता प्राप्त करने के लिए उन्हें पूरे गांव को भोजन कराना पड़ता है। मरने के बाद इन्हें सामूहिक कब्रगाह में भी स्थान नहीं मिलता है।
उन्होंने कहा कि अब तक निमित्त संस्था ने 365 लोगों का विवाह कराया है। रांची, खूंटी, सिमडेगा गुमला ,लोहरदगा और चाईबासा जिले में रहने वाले जनजातियों के बीच यह आम हैं। इसके प्रभाव में आने वाली अन्य जातियों के लोग भी इन प्रथाओं को अपनाते हैं। यह प्रथा सरना, हिंदू, ईसाईयों और मुसलमानों में भी प्रचलित है। उन्होंने कहा कि संस्था का यह प्रयास है कि ऐसे जोड़ों को विवाहित होने की कानूनी और सामाजिक मान्यता प्राप्त हो। इसी को लेकर सामूहिक विवाह कराया जाता है। उन्होंने कहा कि झारखंड से ज्यादा पश्चिम बंगाल में लिव इन रिलेशनशिप में लोग रहते हैं। उन्होंने इसके लिए केंद्र सरकार से सहयोग की मांग की।