Joharlive Team
रांची। 2021 के जनगणना प्रपत्र में सरना आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड के प्रस्ताव पर झारखंड विधानसभा ने विशेष सत्र में ध्वनिमत से मुहर लगा दी। इससे पहले सदन में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि झारखंड एक आदिवासी बहुल प्रदेश है और यहां की बड़ी आबादी सरना धर्म को मानती है। पिछले कई वर्षों से धार्मिक अस्तित्व की रक्षा के लिए जनगणना कोड में सरना धर्मावलंबियों को शामिल करने की मांग को लेकर संघर्ष हो रहा है। इधर समय के साथ आदिवासियों की जनसंख्या में लगातार कमी हो रही है।उन्होंने बताया कि 1931 से 2011 के बीच पिछले 8 दशकों में आदिवासी जनसंख्या का प्रतिशत 38.03 से घटकर 26.03 प्रतिशत हो गया है। 1871 से 1951 तक की जनगणना में आदिवासियों का अलग धर्म कोड था लेकिन साल 1962 के जनगणना प्रपत्र से इसे हटा दिया गया, जबकि 2011 की जनगणना में देश के 21 राज्य में रहने वाले लगभग 50 लाख आदिवासियों ने जनगणना प्रपत्र के अन्य कॉलम में सरना धर्म लिखा। लिहाजा, आदिवासी /सरना धर्म कोड का प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार को भेजा जाना चाहिए।
भाजपा के वरिष्ठ नेता नीलकंठ सिंह मुंडा ने सीएम के प्रस्ताव पर खुशी जाहिर की। उन्होंने कहा कि भाजपा हमेशा आदिवासियों के हित की बात करती रही है लेकिन प्रस्ताव में आदिवासी/सरना धर्म कोड में जो (/) डाला गया है, उससे कई तरह की शंका पैदा हो रही है। अगर इस निशान को हटा दिया जाता है तो भाजपा इस प्रस्ताव का समर्थन करेगी।उन्होंने 1961 में आदिवासियों का धर्म कोड जनसंख्या प्रपत्र से हटाए जाने पर पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार की मंशा पर भी सवाल खड़े किए और कहा कि 2013 में भाजपा सांसद सुदर्शन भगत ने भी इस मामले को लोकसभा में उठाया था। इस पर कांग्रेस की तरफ से कहा गया था कि यह संभव नहीं है जबकि उस वक्त अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष रामेश्वर उरांव थे। नीलकंठ सिंह मुंडा ने कहा कि पर इस मसले पर रामेश्वर उरांव ने कुछ नहीं किया. नीलकंठ सिंह मुंडा ने इस बात पर भी आपत्ति जताई कि देवड़ी मंदिर में पहन पूजा करते हैं लेकिन इस मंदिर का सरकार ने अधिग्रहण कर लिया है। इससे पहानो का हक मारा जा रहा है।