रांचीः झारखंड में आदिवासियों की हकमारी में वन विभाग कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहा. वजह यह है कि सूबे में वनाधिकार कानून भी दम तोड़ता नजर आ रहा है. आदिवासियों को उनके दावों से बहुत कम जमीन मिल रही है. सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक झारखंड के करीब 15 हजार जंगल वाले गांवों में लगभग ढाई करोड़ से अधिक की आबादी रहती है. यहां सामुदायिक और निजी करीब 19 लाख हेक्टेयर वन भूमि पर दावों की संभाव्यता है.
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक झारखंड में 60 हजार व्यक्तिगत व दो हजार सामुदायिक पट्टों को वितरण हुआ है, जबकि 49 हजार दावा पत्र विभाग के पास लंबित हैं. झारखंड वन अधिकार मंच और इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस (आईएसबी) की संयुक्त सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में 32,112 गांव हैं. इनमें से 14,850 जंगल वाले गांव हैं और इसका क्षेत्रफल 73,96,873.1 हेक्टेयर है. परिवारों की संख्या 46,86,235 और और आबादी 2,53,64,129 है. इसमें एसटी और एससी क्रमशः 75,66,842 व 30,98,330 हैं. इन क्षेत्रों में सामुदायिक एवं निजी 18,82,429.02 हेक्टेयर वन भूमि पर दावों की संभाव्यता है.
भारत सरकार के जनजातीय कार्य मंत्रालय की वेबसाइट पर अपडेट आंकड़ों के मुताबिक झारखंड सरकार को एक लाख सात हजार व्यक्तिगत पट्टा दावा प्राप्त हुआ है. पर सरकार ने 60 हजार पट्टों का ही वितरण किया है. यानी 47 हजार मामले लंबित हैं. वहीं, सामुदायिक पट्टे का दावा मात्र चार हजार ही प्राप्त हुआ है, जिनमें दो हजार ही सामुदायिक पट्टे का वितरण हुआ है. वहीं, 1.53 लाख एकड़ निजी और 1.04 लाख एकड़ सामुदायिक वन भूमि पर पट्टा मिला है. हालांकि सरकार के पास ये आंकड़ा नहीं है कि कितनी जमीन पर दावा किया गया है.
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