Joharlive Team

  • 558 साल बाद बन रहा है कई शुभ योग और संयोग
  • भद्रा सुबह 9 : 29 तक है। रक्षाबंधन इसके बाद ही करना चाहिए।
  • शुभ 08:38 से 10: 16 तक शुभ है।

रोग 10: 16 से 11:55 तक खराब है,

उद्वेग 11:55 से 01: 33 दोपहर तक का समय सामान्य है,

चर 11:33 से 03: 11 तक बहुत शुभ है,

लाभ दोपहर 03:11 से 04 : 50 तक बहुत शुभ है,

अमृत साम 04:50 से 06: 28 तकबहुत शुभ है,

चर साम 06: 28 से 07: 50 तक शुभ है,

रोग 07: 50 से 09 : 12 तक खराब है।

शुभ संयोग- सावन माह की पूर्णिमा पर गुरु और शनि अपनी-अपनी राशि में रहेंगे वक्री।

            भारत देश धर्म और कर्म पर आधारित देश है। यहाँ पग पग पर त्यौहार मनाया जाता है। यही बंधन रिस्तो को और भी प्रगाढ़ बनाता है।इनमे से सबसे ऊपर नाम आता है रक्षाबंधन का। 

इस वर्ष यह अपने आप मे दुर्लभ योग और संयोग लेकर आ रहा है। रक्षाबंधन के दिन बहुत ही अच्छे ग्रह नक्षत्रों का संयोग बन रहा है. इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है. इस संयोग में सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. इसके अलावा इस दिन आयुष्मान दीर्घायु योग है जो भाई-बहन दोनों की आयु के लिए शुभ है। 3 अगस्त को चंद्रमा का ही श्रवण नक्षत्र है। मकर राशि का स्वामी शनि और सूर्य आपस मे समसप्तक योग बना रहे हैं। शनि और सूर्य दोनों आयु बढ़ाते हैं । ऐसा संयोग 29 साल बाद आया है! शुभ मुहूर्त – इस बार सुबह 9:29 बजे तक भद्रा रहेगी। जिसमे बहनें राखी नहीं बाँध सकती है। 9:29 के बाद पूरे दिन राखी बांध सकते हैं।
रक्षाबंधन पर गुरु अपनी राशि धनु में और शनि मकर में वक्री रहेगा। इस दिन चंद्र ग्रह भी शनि के साथ मकर राशि में रहेगा। इस बार रक्षाबंधन पर राहु मिथुन राशि में, केतु धनु राशि में है।
विधिवत पूजा के बाद बांधे राखी-
✍🏻रक्षाबंधन की सुबह स्नान के बाद देवी-देवताओं की पूजा करें। साथ ही राखी की भी विधिवत पूजा करें। पितरों का ध्यान करें। इन शुभ कामों के बाद पीले रेशमी वस्त्र में सरसों, केसर, चंदन, चावल, दूर्वा और दीपक ले कर घर के मंदिर में एक कलश की स्थापना करें। उस पर रक्षासूत्र को रख विधिवत पूजन करें। यदि हो सके तो कच्चे सूत्र काप्रयोग करें। जिनका कोई भाई बहन नही हो ओ किसी को अपना मानसिक भाई बहन बना कर रखी बांध सकते हैं। आज के दिन गुरु या ब्राह्मण से भी रखी बंधवाना चाहिए। साथ ही उन्हें कुछ उपहार भी देना चाहिए। पौराणिक कथानुसार-
रक्षाबंधन की कथा बहुत ही पौराणिक है। सबसे पहले इंद्राणी ने देवराज इंद्र को बांधा था रक्षासूत्र प्राचीन समय में देवताओं और असुरों के बीच युद्ध हो रहा था। इस युद्ध में देवताओं को पराजित होना पड़ा। असुरों ने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। पराजय के बाद देवराज इंद्र और सभी देवता इस समस्या को दूर करने के लिए देवगुरु बृहस्पति के पास पहुंचे। इंद्र ने देवगुरु से कहा कि मैं स्वर्ग छोड़कर नहीं जा सकता, असुरों ने हमें पराजित कर दिया, हमें फिर से युद्ध करना होगा। इंद्र की ये बातें इंद्राणी ने भी सुनी, तब उसने कहा कि कल सावन माह की पूर्णिमा है। मैं आपके लिए विधि-विधान से रक्षासूत्र तैयार करूंगी, उसे बांधकर आप युद्ध के लिए प्रस्थान करना, आपकी जीत अवश्य होगी। अगले दिन देवराज इंद्र रक्षासूत्र बांधकर असुरों से युद्ध करने गए और उन्होंने असुरों को पराजित कर दिया। तब से ही ये पर्व मनाया जाने लगा।
शास्त्रानुसार माता लक्ष्मी ने राजा बली को यह रक्षा सूत्र बाधा।
ब्राह्मण अपने यजमानो के लिए यह रक्षा सूत्र धारण कराते है।
बहिन अपने भाई के लिए रक्षा सूत्र बांधती है।

आचार्य प्रणव मिश्रा
आचार्यकुलम, अरगोड़ा रांची
9031249105

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