Joharlive Desk
नयी दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विज्ञान को प्रयोगशाला को जमीन तक ले जाने पर जोर देते हुए रविवार को कहा कि देश का हर नागरिक अपने जीवन में विज्ञान का विस्तार करेगा, तो प्रगति के रास्ते भी खुलेंगे और देश आत्मनिर्भर भी बनेगा।
श्री मोदी ने आकाशवाणी पर अपने मन की बात कार्यक्रम में कहा, “ मुझे विश्वास है, ये देश का हर नागरिक कर सकता है। उन्होंने कहा कि आज राष्ट्रीय विज्ञान दिवस भी है। आज का दिन भारत के महान वैज्ञानिक, डॉक्टर सी.वी. रमन द्वारा की गई रमण इफेक्ट खोज को समर्पित है। इस खोज ने पूरी विज्ञान की दिशा को बदल दिया था। मैं जरूर चाहूँगा कि हमारे युवा, भारत के वैज्ञानिक – इतिहास को, हमारे वैज्ञानिकों को जाने, समझें और खूब पढ़ें।”
श्री मोदी ने कहा कि जब हम विज्ञान की बात करते हैं तो कई बार इसे लोग भौतिकी – रसायनशास्त्र या फिर प्रयोगशाला तक ही सीमित कर देते हैं, लेकिन, विज्ञान का विस्तार तो इससे कहीं ज्यादा है । ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ में विज्ञान की शक्ति का बहुत योगदान भी है।
उन्होंने कहा कि उदाहरण के तौर पर हैदराबाद के चिंतला वेंकट रेड्डी जी हैं। रेड्डी जी के एक डॉक्टर मित्र ने उन्हें एक बार ‘विटामिन-डी’ की कमी से होने वाली बीमारियाँ और इसके खतरों के बारे में बताया। रेड्डी जी किसान हैं, उन्होंने सोचा कि वो इस समस्या के समाधान के लिए क्या कर सकते हैं ? इसके बाद उन्होंने मेहनत की और गेहूं चावल की ऐसी प्रजातियों को विकसित की जो खासतौर पर ‘विटामिन-डी’ से युक्त हैं। इसी महीने उन्हें विश्व बौद्धिक संपदा संगठन से पेटेंट भी मिली है । ये हमारी सरकार का सौभाग्य है कि वेंकट रेड्डी जी को पिछले साल पद्मश्री से भी सम्मानित किया था।
ऐसे ही लद्दाख के उरगेन फुत्सौग भी काम कर रहे हैं। उरगेन जी इतनी ऊंचाई पर जैविक तरीके से खेती करके करीब 20 फसलें उगा रहे हैं वो भी साइकिल तरीके से, यानी वो, एक फसल के कचड़े को, दूसरी फसल में, खाद के तौर पर, इस्तेमाल कर लेते हैं।
इसी तरह गुजरात के पाटन जिले में कामराज भाई चौधरी ने घर में ही शाहजन के अच्छे बीज विकसित किए हैं। अच्छे बीजों की मदद से जो शाहजान पैदा होता है, उसकी गुणवत्ता भी अच्छी होती है। अपनी उपज को वो अब तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल भेजकर, अपनी आय भी बढ़ा रहे हैं।
आजकल स्वाथ्य के प्रति जागरूक लोग चिया सीड्स को काफी महत्व देते हैं और दुनिया में इसकी बड़ी मांग भी है। भारत में इसे ज्यादातर बाहर से मंगाया जाता है, लेकिन अब, चिया सीड्स में आत्मनिर्भरता का बीड़ा भी लोग उठा रहे हैं। उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में हरिश्चंद्र जी ने चिया सीड्स की खेती शुरू की है।