JoharLive Desk
नयी दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश को एकता के सूत्र में पिरोने वाले लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल को याद करते हुए कहा कि उनमें जहां लोगों को एकजुट करने की अद्भुत क्षमता थी, वहीं, वह उन लोगों के साथ भी तालमेल बिठा लेते थे जिनके साथ उनके वैचारिक मतभेद होते थे। सरदार पटेल बारीक़-से-बारीक़ चीजों को भी बहुत गहराई से देखते थे, परखते थे। सही मायने में, वह ‘मैन आफ डिटेल’ थे।
श्री मोदी ने आकाशवाणी पर रविवार को ‘मन की बात’ कार्यक्रम में कहा, “ मेरे प्यारे भाइयों और बहनों, मुझे विश्वास है कि 31 अक्टूबर की तारीख़ आप सबको अवश्य याद होगी। यह दिन सरदार वल्लभभाई पटेल की जन्म जयंती का है जो देश को एकता के सूत्र में पिरोने वाले महानायक थे। वह संगठन कौशल में निपुण थे। योजनाओं को तैयार करने और रणनीति बनाने में उन्हें महारत हासिल थी। संविधान सभा में उल्लेखनीय भूमिका निभाने के लिए हमारा देश, सरदार पटेल का सदैव कृतज्ञ रहेगा| उन्होंने मौलिक अधिकारों को सुनिश्चित करने का महत्वपूर्ण कार्य किया, जिससे, जाति और संप्रदाय के आधार पर होने वाले किसी भी भेदभाव की गुंजाइश न बचे।”
उन्होंने कहा कि हम सब जानते हैं कि भारत के प्रथम गृहमंत्री के रूप में सरदार पटेल ने, रियासतों को एक करने का एक बहुत बड़ा भगीरथ और ऐतिहासिक काम किया। उनकी नज़र हर घटना पर टिकी रहती थी। एक तरफ उनकी नज़र हैदराबाद, जूनागढ़ और अन्य राज्यों पर केन्द्रित थी वहीं दूसरी तरफ उनका ध्यान दूर-सुदूर दक्षिण में लक्षद्वीप पर भी था | दरअसल, जब हम सरदार पटेल के प्रयासों की बात करते हैं तो देश के एकीकरण में कुछ खास प्रान्तों में ही उनकी भूमिका की चर्चा होती है। लक्षद्वीप जैसी छोटी जगह के लिए भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस बात को लोग शायद ही याद करते हैं। आप भलीभांति जानते है कि लक्षद्वीप कुछ द्वीपों का समूह है। यह भारत के सबसे खुबसूरत क्षेत्रों में से एक है। 1947 में भारत विभाजन के तुरंत बाद हमारे पड़ोसी की नज़र लक्षद्वीप पर थी और उसने अपने झंडे के साथ जहाज भेजा था। सरदार पटेल को जैसे ही इस बात की जानकारी मिली उन्होंने बगैर समय गंवाये, जरा भी देर किये बिना, तुरंत, कठोर कार्रवाई शुरू कर दी।
प्रधानमंत्री ने कहा कि सरदार साहब की याद में बना ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ दुनिया की सबसे ऊँची प्रतिमा है। दुनिया की सबसे ऊँची प्रतिमा हर हिन्दुस्तानी को गर्व से भर देती है। हर हिन्दुस्तानी का सिर शान से ऊँचा उठ जाता है| आपको ख़ुशी होगी एक वर्ष में, 26 लाख से अधिक पर्यटक इस प्रतिमा को देखने के लिए पहुँचें। इसका मतलब हुआ कि प्रतिदिन औसतन साढ़े आठ हज़ार लोगों ने प्रतिमा की भव्यता का दर्शन किया।
श्री मोदी ने कहा, “ देश के लिए, सभी राज्यों के लिए, पर्यटन उद्योग के लिए ये सरदार की प्रतिमा एक अध्ययन का विषय हो सकता है। हम सब इसके साक्षी हैं कि कैसे एक साल के भीतर-भीतर एक स्थान, विश्व प्रसिद्ध पर्यटक स्थल के तौर पर विकसित होता है| वहाँ देश विदेश से लोग आते हैं| साथियों कौन हिन्दुस्तानी होगा जिसको इस बात का गर्व नहीं होगा कि पिछले दिनों टाईम मैगजीन ने दुनिया के 100 महत्वपूर्ण पर्यटन स्थलों में ‘स्टैच्यू आॅफ यूनिटी’ को भी अहम स्थान दिया है| मुझे आशा है कि आप सभी लोग अपने कीमती समय से कुछ समय निकाल कर प्रतिमा देखने जाएंगे।
उन्होंने कहा कि 2014 से हर साल 31 अक्टूबर को ‘राष्ट्रीय एकता दिवस’ मनाया जाता है | यह दिन, हमें, अपने देश की एकता, अखंडता और सुरक्षा की हर कीमत पर रक्षा करने का सन्देश देता है | 31 अक्टूबर को, हर बार की तरह ‘रन फॉर यूनिटी’ का आयोजन भी किया जा रहा है| इसमें समाज के हर वर्ग के, हर तबके के लोग शामिल होंगे| पिछले पांच साल देखा गया है – न सिर्फ़ दिल्ली लेकिन हिन्दुस्तान के सैकड़ों शहरों में, केंद्र शासित प्रदेशों में, राजधानियों में, जिला केन्द्रों में, छोटे-छोटे शहरों में भी बहुत बड़ी मात्रा में पुरुष हो, महिला हो, शहर के लोग हों, गाँव के लोग हों, बालक हो, नौजवान हो, वृद्ध लोग हों, दिव्यांगजन हो, सब लोग बहुत बड़ी मात्रा में शामिल हो रहे हैं | वैसे भी, आजकल, देखें तो लोगों में मैराथन को लेकर के एक शौक और जूनून देखने को मिल रहा है| मुझे उम्मीद है कि आप सब 31 अक्टूबर को ज़रूर दौड़ेंगे – भारत की एकता के लिए, ख़ुद की फिटनेस के लिये भी।”
सरदार पटेल ने देश को एकता के सूत्र में बांधा | एकता का यह मंत्र हमारे जीवन में संस्कार की तरह है और भारत जैसे विविधताओं से भरे देश में हमें हर स्तर पर, हर डगर पर, हर मोड़ पर, हर पड़ाव पर, एकता के इस मंत्र को मज़बूती देते रहना चाहिए| देश की एकता और आपसी सदभावना को सशक्त करने के लिए हमारा समाज हमेशा से बहुत सक्रिय और सतर्क रहा है| हम अपने आस-पास ही देखें तो ऐसे कई उदाहरण मिलेंगे जो आपसी सदभाव को बढ़ाने के लिए निरंतर काम करते रहे हैं, लेकिन, कई बार ऐसा भी होता है कि समाज के प्रयास, उसका योगदान, स्मृति पटल से बहुत जल्द ओझल हो जाता है।