New Delhi : राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने जनजातीय समुदाय द्वारा विशेष उत्साह के साथ मनाए जाने वाले वसंत त्योहार सरहुल पर लोगों को शुभकामनाएं दीं. उन्होंने उम्मीद जताई कि लोग विकास के पथ पर आगे बढ़ते हुए प्राकृतिक विरासत को संरक्षित करने की सीख लेंगे.
राष्ट्रपति मुर्मू ने मंगलवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर अपनी पोस्ट किया, “आदिवासी समुदाय द्वारा विशेष उत्साह के साथ मनाए जाने वाले ‘सरहुल’ पर्व के अवसर पर सभी देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं. इस पर्व पर प्रकृति के असंख्य उपहारों के प्रति आभार व्यक्त किया जाता है. नववर्ष के आगमन के प्रतीक इस पर्व पर मैं सभी के लिए सुख और समृद्धि की कामना करती हूं. मेरी शुभकामना है कि सभी देशवासी आदिवासी समुदायों से सीख लेते हुए प्राकृतिक धरोहर को संरक्षित करते हुए विकास के पथ पर आगे बढ़ें.”
सभी देशवासियों को,जनजातीय समुदाय द्वारा विशेष उत्साह से मनाए जाने वाले ‘सरहुल’ त्योहार की हार्दिक शुभकामनाएं! इस पर्व पर, प्रकृति के असंख्य उपहारों के लिए कृतज्ञता व्यक्त की जाती है। नव वर्ष के आगमन के प्रतीक इस त्योहार पर मैं सबके लिए सुख-समृद्धि की कामना करती हूं। मेरी मंगल…
— President of India (@rashtrapatibhvn) April 1, 2025
सरहुल त्योहार आदिवासी समुदायों में सबसे अधिक पूजनीय उत्सवों में से एक है, विशेष रूप से झारखंड, ओडिशा और पूर्वी भारत के क्षेत्रों में इसे मनाया जाता है. यह प्रकृति की पूजा पर आधारित है और इस दौरान साल के पेड़ों (शोरिया रोबस्टा) की पूजा की जाती है, जिसका आदिवासी परंपरा में बहुत महत्व है. माना जाता है कि साल के पेड़ में सरना मां का निवास है, जो प्रकृति की शक्तियों से गांवों की रक्षा करने वाली देवी हैं.
सरहुल का अर्थ है “साल वृक्ष की पूजा”. यह पर्व सूर्य और पृथ्वी के प्रतीकात्मक मिलन का जश्न मनाता है. यह सांस्कृतिक प्रदर्शनों, पारंपरिक अनुष्ठानों और प्रकृति के भरपूर उपहारों के प्रति कृतज्ञता की अभिव्यक्ति से भरा एक जीवंत त्योहार है. झारखंड पर्यटन के आधिकारिक ट्विटर अकाउंट ने भी सभी को सरहुल त्योहार की शुभकामनाएं दीं.
विभाग ने एक्स पर लिखा, “झूमर नृत्य की झंकार, लोकगीतों की गूंज, मांदर की मनमोहक थाप के साथ झारखंड पर्यटन विभाग आप सभी को प्रकृति पर्व ‘सोना सरहुल’ की हार्दिक शुभकामनाएं देता है. वनों और साल वृक्षों की इस पावन धरती से आपके जीवन में सुख और समृद्धि की कामना करता हूं.” यह त्योहार आदिवासी समुदायों के लिए गहन सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व रखता है, जो प्रकृति के साथ उनके घनिष्ठ संबंध का प्रतीक है तथा प्रगति को अपनाते हुए पर्यावरण के संरक्षण के महत्व पर बल देता है.
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