रांची: हर तीन साल पर होने वाले झारखंड मुक्ति मोर्चा का 12वां महाधिवेशन 18 दिसंबर को रांची के हरमू के सोहराय भवन में होगा. कोरोनाकाल में हो रहे इस महाधिवेशन में कुल प्रतिनिधियों के 20% से भी कम की उपस्थिति रहेगी. मुख्यमंत्री और झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन ने खुद सोहराय भवन जाकर महाधिवेशन की तैयारियों का जायजा लिया.

राजधानी में 50 से ज्यादा तोरण द्वार बनाए गए
झारखंड मुक्ति मोर्चा के 12वां महाधिवेशन में झारखंड के अलावा बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और असम के प्रतिनिधि भी शिरकत करेंगे. इसमें झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय अध्यक्ष शिबू सोरेन ध्वजारोहण करेंगे इसके बाद महाधिवेशन की शुरुआत होगी. उसके बाद केंद्रीय समिति भंग कर अध्यक्ष मंडल और संचालन मंडल का गठन होगा. महाधिवेशन में सांगठनिक प्रतिवेदन पर चर्चा होगी और पार्टी संविधान संशोधन का प्रस्ताव लाया जाएगा. दूसरे सत्र में केंद्रीय समिति का गठन और अध्यक्ष, कार्यकारी अध्यक्ष सहित पार्टी पदाधिकारियों का चयन होगा.

झारखंड के अलावा दूसरे राज्यों से भी आएंगे प्रतिनिधि
पार्टी के 12वें महाधिवेशन की तैयारियों में लगे केंद्रीय महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्या ने बताया कि महाधिवेशन में झारखंड के अलावा बिहार, ओडिशा, बंगाल और असम से भी पार्टी के प्रतिनिधि पहुंचेंगे. हर तीन साल पर होने वाले झारखंड मुक्ति मोर्चा के 10 वें जमशेदपुर महाधिवेशन में केंद्रीय अध्यक्ष शिबू सोरेन के स्वास्थ्य और बढ़ती उम्र को देखते हुए सर्वसम्मति से हेमंत सोरेन को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया था. 11 वां महाधिवेशन धनबाद के मैथन में 2018 में हुआ था. 11 वें महाधिवेशन के बाद पार्टी ने अपने कई दिग्गज नेताओं को खो दिया है. ऐसे में इस बार 12 वें महाधिवेशन का आयोजन स्थल सोहराय भवन को हाजी हुसैन अंसारी और साइमन मरांडी स्मृति प्रांगण का नाम दिया गया है.

राजनीतिक प्रस्ताव में भाजपा की नीतियों पर प्रहार की तैयारी
18 दिसंबर को होने वाले झारखंड मुक्ति मोर्चा के 12वें महाधिवेशन दो सत्रों में संचालित होंगे पहले सत्र में जहां कार्यसमिति, कार्यकारिणी और अध्यक्ष सहित सभी पदाधिकारियों का चुनाव होगा वहीं दूसरे सत्र में राजनीतिक प्रस्ताव, पार्टी के आगामी कार्यक्रम, संगठन विस्तार पर चर्चा होगी. महाधिवेशन में जो राजनीतिक प्रस्ताव लाए जाएंगे उसके केंद्र में पूर्व में सत्ता में रही पार्टी भाजपा होगी. इस प्रस्ताव के माध्यम से यह बताया जाएगा कि कैसे अब तक सबसे अधिक दिन सत्ता में रहने के बावजूद भाजपा ने राज्य का विकास नहीं किया और खास कर रघुवर दास का शासनकाल उसकी पराकाष्ठा थी.

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