जिन लोगों की मृत्यु पूर्णिमा तिथि पर हुई हो, उनका श्राद्ध पहले दिन करना चाहिए. आज 10 सितंबर से पितृ पक्ष की शुरुआत हो गई है. पितृ पक्ष का समापन 25 सितंबर को होगा. इन 17 दिनों तक पिंडदानी अपने पितरों (पूर्वजों) को तर्पण कर सकते हैं. पितरों की पूजा की विधि की प्रक्रिया भी बहुत अलग होती है.

पिंडदान करने के दौरान कई चीजों का खास ख्याल रखना होता है. पिंडदानी को खासकर काफी नियमों का पालन करना होता है. इस दौरान जब तक श्राद्ध ना हो जाए वंशज ना तो दाढ़ी बना सकते हैं और ना हीं अपने नाखून काट सकते हैं.

इस नियम का पालन काफी सख्ती से आज भी किया जाता है. मांस मदिरा से भी दूरी बना ली जाती है. माना जाता है कि इन नियमों का पालन नहीं करने से पितृ दोष लगता है. यानी कि आने वाली कई पीढ़ियों को पितरों के कोप का भाजन बनना पड़ता है.

पितृपक्ष श्राद्ध की पूजा विधि:

श्राद्ध में तिल, चावल, जौ आदि को अधिक महत्त्व दिया जाता है .श्राद्ध में इन चीजों को विशेष रुप से सम्मिलित करना चाहिए. इसके बाद श्राद्ध को पितरों को भोग लगाकर किसी ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए. तिल और पितरों की पंसद चीजें, उन्हें अर्पित करें.श्राद्ध में पितरों को अर्पित किए जाने वाले भोज्य पदार्थ को पिंडी रूप में अर्पित करना चाहिए.श्राद्ध का अधिकार पुत्र, भाई, पौत्र, प्रपौत्र समेत महिलाओं को भी होता है.अंत में कौओं को श्राद्ध को भोजन कराएं. क्योंकि कौए को पितरों का रुप माना जाता है.

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