गया : पितृपक्ष के तहत पिंडदान शुरू हो गया है. गयाजी में आज यानि पूर्णिमा तिथि को फल्गुनी नदी तीर्थ में स्नान, तर्पण और नदी तट पर खीर के पिंड से फल्गु श्राद्ध करने का विधान है. जिन लोगों की मृत्यु पूर्णिमा तिथि पर हुई हो, उनका श्राद्ध इस दिन करना चाहिए. इस बार पितृपक्ष 20 सितंबर से शुरू हुआ है. इस बार पितृपक्ष अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से शुरू होकर अश्विनी मास की अमावस्या तिथि यानी 6 अक्टूबर तक रहेगा.
19 सितंबर को अंनत चतुदर्शी के बाद दूसरे दिन गया जी में त्रैपाक्षिक कर्मकांड का पहला दिन का फल्गु नदी के तट पर पिंडदान करने का महत्व है. श्रापित फल्गु नदी की एक बूंद से तर्पण करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है.
दरअसल कोरोना महामारी के बीच पहली बार गया में पितृपक्ष के दौरान पिंडदान किया जा रहा है. जिला प्रशासन और विष्णुपद प्रबन्धकारणी समिति ने पिंडदानियों के सुविधाओं के लिए व्यवस्था की है. आज पितृपक्ष में पहले दिन गया जी में प्रवाहित होनेवाले फल्गु नदी के तट पर पिंडदान करने का महत्व है.
पंडित राजाचार्य ने बताया कि आज के दिन पुनपुन नदी के तट पर पिंडदानी गया जी में आकर यहां फल्गु नदी के तट पर तीर्थपुरोहित को पांव पूजन करके पिंडदान शुरू करते हैं. 17 दिवसीय पिंडदान का आज दूसरा दिन है. गया जी में पिंडदान का पहला दिन है. गया जी में फल्गु नदी में पिंडदान करने का महत्व है. फल्गु नदी पर खीर का अगर पिंडदान किया जाए तो उसे अति उत्तम माना जाता है.
पितृपक्ष का शाब्दिक अर्थ होता है पितरों का पखवाड़ा, यानि कि पूर्वजों के लिए 15 दिन. पितृ पक्ष हर साल अनंत चतुर्दर्शी के बाद भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या तक पितृपक्ष के रूप में मनाया जाता है. ऐसी मान्यता है कि इन पंद्रह दिनों के दौरान पूर्वज मोक्ष प्राप्ति के उद्देश्य से अपने परिजनों के पास पहुंचते हैं. पितृ पक्ष के दौरान पिंडदान व श्राद्धकर्म करने से पूर्वजों को पृथ्वी लोक में बार-बार जन्म लेने के चक्र से मुक्ति मिलती है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस पर्व में अपने पितरों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता व उनकी आत्मा के लिए शान्ति देने के लिए श्राद्ध किया जाता है.
पितृपक्ष श्राद्ध की पूजा विधि
- श्राद्ध में तिल, चावल, जौ आदि को अधिक महत्त्व दिया जाता है.
- श्राद्ध में इन चीजों को विशेष रुप से सम्मिलित करें.
- इसके बाद श्राद्ध को पितरों को भोग लगाकर किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं.
- तिल और पितरों की पंसद चीजें, उन्हें अर्पित करें.
- श्राद्ध में पितरों को अर्पित किए जाने वाले भोज्य पदार्थ को पिंडी रूप में अर्पित करना चाहिए.
- श्राद्ध का अधिकार पुत्र, भाई, पौत्र, प्रपौत्र समेत महिलाओं को भी होता है.
- अंत में कौओं को श्राद्ध को भोजन कराएं. क्योंकि कौए को पितरों का रुप माना जाता है.
गयावाल पंडा समाज के गजाधर लाल पंडा कहते हैं, ‘पिंडवेदी कोई एक जगह नहीं है. तीर्थयात्रियों को धार्मिक कर्मकांड में दिनभर का समय लग जाता है. ऐसे में लोग पूरी तरह थक जाते हैं, और तीर्थयात्री अपने परिवार के साथ आराम की तलाश करते हैं. आश्विन माह के कृष्णपक्ष के पितृपक्ष पखवारे में विष्णुनगरी में अपने पितरों को मोक्ष दिलाने की कामना लिए देश ही नहीं, विदेशों से भी सनातन धर्मावलंबी गया आते हैं. इस मेले में कर्मकांड का विधि-विधान कुछ अलग-अलग है.’
गजाधर लाल पंडा ने बताया, ‘श्रद्घालु एक दिन, तीन दिन, सात दिन, 15 दिन और 17 दिन तक का कर्मकांड करते हैं. कर्मकांड करने आने वाले श्रद्घालु यहां रहने के लिए तीन-चार महीने पूर्व से ही इसकी व्यवस्था कर चुके होते हैं.’