आत्मा एक भौतिक शरीर में अवतरित होती है, जो पांच तत्वों के विभिन्न मेल और संयोग से बना है. व्यक्ति के जीवन काल में किए गए कर्मों के आधार पर उसका जन्म जन्मान्तर पुनर्जन्म होता है. कुछ आत्माएं ऐसी होती हैं, जिनका पुनर्जन्म नहीं होता, क्योंकि वह भू लोक [पृथ्वी लोक] के अपने कर्म चक्र को समाप्त कर चुकी होती हैं या फिर वह अस्तित्व के किसी अन्य लोक में फँसी हुई होती हैं, क्योंकि उनके कर्मों का खाता उन्हें मनुष्य जन्म का हक़ देने के लिए पर्याप्त नहीं है. इसलिए वह मनुष्य शरीर धारण करने में असमर्थ हैं. यह अतृप्त आत्माएं बिना किसी स्वरूप, बस एक ऊर्जा रूप में रहती हैं और भूत-प्रेत कहलाती हैं या वह अस्तित्व के एक अन्य लोक में चली जाती हैं, जिसे पितृ लोक या पूर्वजों का लोक भी कहा जाता है. वह आत्माएं अस्तित्व के किसी भी स्तर पर हों, जब तक वह जन्म – मरण के चक्र से मुक्त नहीं हो जातीं, अपने कर्मों के खाते को पूरा करने के लिए उन्हें अपनी संतानों से शक्ति की आवश्यकता होती है, ताकि वह पुनः जन्म ले सकें.

पूर्वजों की जरूरतों को पूरी करें

श्राद्ध हिंदू/वैदिक संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, जो हमारे पूर्वजों की इन आवश्यकताओं को पूरा करते हैं. इन तिथियों में नक्षत्रों की स्थिति कुछ इस प्रकार होती है, कि अन्य लोकों के द्वार खुल जाते हैं और पितरों को अपने प्रियजनों से मिलने के लिए पृथ्वी पर आने की अनुमति मिल जाती है. यह पूर्वज पुण्य कर्म और विशिष्ट मंत्रों का जप करने के लिए अपने बच्चों और पोते-पोतियों पर निर्भर रहते हैं. संतानों द्वारा किये गए पुण्य कर्मों की शक्ति इन आत्माओं को अनचाही योनियों अथवा लोकों से मुक्त करती है.परिवार के सदस्यों का यह मूल कर्तव्य है, कि वह अवश्य ही कुछ श्राद्ध संस्कार करें और अपने करीबी लोगों के नाम पर दान और गौ दान करें.चूँकि केवल मानव शरीर में होते हुए ही यह सत्कर्म किये जा सकते हैं, देहांत होने पर नहीं. उसके पश्चात् यदि आपके कर्म अनुमति नहीं देते हैं, तो आप अपने उद्धार और पुनर्जन्म के लिए दूसरों पर ही निर्भर होते हैं .

वैदिक ज्ञान नहीं होना, शिक्षा प्रणाली में दोष

आज के इस युग में, देश की युवा पीढ़ी को वैदिक ज्ञान की शक्ति और उसके प्रभाव का कोई ज्ञान नहीं है और न ही उन्हें वैदिक मंत्रों तथा संस्कारों के बारे में कुछ पता है. इसके लिए आज की शिक्षा प्रणाली को दोषी ठहराया जा सकता है क्योंकि यह प्रणाली पूरी तरह से उस पर आधारित है जो औपनिवेशिक शासकों ने हमारे लिए चुनी थी.वह शासक वेदों की शक्ति से भयभीत थे,इसलिए उन्होंने हमारी गुरुकुल प्रणाली को ही नष्ट कर दिया और यह भी सुनिश्चित किया, कि, हमें अनावश्यक विज्ञान पढ़ाया जाए और शासकों के लाभ के लिए इतिहास में बदलाव किया जाए.उनका उद्देश्य सिर्फ यह था कि, आने वाली पीढ़ियाँ अपनी संस्कृति पर विश्वास खो कर, औपनिवेशिक शासकों का आँख मूँद कर अनुसरण करें. उनके उद्देश्य का परिणाम आज साफ दिखाई दे रहा है.

इतिहास में मौजूद हैं कई तथ्य

युवा पीढ़ी सोच रही होगी कि यह लेख भी एक हिंदुत्व का ड्रामा है और कोरी कल्पना पर आधारित एक कथा है,तो मैं इतिहास के कुछ तथ्यों की ओर ध्यान दिलाना चाहूंगा. लगभग 4000 वर्ष पूर्व प्राचीन विश्व में कुछ मुख्य समृद्ध संस्कृतियाँ जैसे मिस्र, मेसोपोटामिया, रोमन, माया आदि थीं और निश्चित रूप से हमारी अपनी संस्कृति थी.हिंदू धर्म और वैदिक विचारधारा के अलावा वर्तमान समय का कोई भी धर्म या विचारधारा उस समय मौजूद नहीं थी.प्रचलित सभी संस्कृतियाँ दूसरी दुनिया और आत्मा के अन्य लोकों की यात्रा में विश्वास करती थीं.पिरामिड जो कि सभी महाद्वीपों में एक सामान्य विशेषता है, इन प्राचीन गुरुओं के उन्नत और उच्च वैज्ञानिक ज्ञान का जीवंत प्रमाण हैं.

पूर्वजों के ज्ञान को वैज्ञानिकों ने माना

आज वैज्ञानिक भी यह स्वीकार करते हैं कि पूर्वजों को गणित, खगोल विज्ञान, रसायन विज्ञान और भौतिकी का गहरा ज्ञान था. पिरामिड उत्तर दक्षिण दिशा में संरेखित हैं और उनमें लगे शाफ्ट ओरायन बेल्ट के तीन मुख्य तारों की ओर इशारा कर रहे हैं, जिनके बारे में आज के वैज्ञानिकों का कहना है, कि वह मानव उत्पत्ति और तारों का जन्म स्थान हो सकते हैं. पिरामिड बनाने के लिए इतने भारी पत्थरों को हटाने की तकनीक अभी भी मानव जाति के पास उपलब्ध नहीं है. वास्तव में वैज्ञानिक आज तक इससे चकित हैं और तब और चकित हो गए जब उन्हें मोहनजोदाड़ो में मानव अवशेष की हड्डियों में रेडियोएक्टिविटी की उच्च मात्रा मिली जो किसी परमाणु विस्फोट का संकेत दे रही थी. 4000 वर्ष पूर्व जब यह सभ्यताएँ फल-फूल रही थीं, उस समय तीसरा युग अथवा द्वापर युग चल रहा था. यदि हम त्रेता युग में और पीछे जाने की कोशिश करें और रामायण युद्ध में इस्तेमाल किए गए विभिन्न हथियारों के बारे में पढ़ें, तो हमें पता चलेगा कि हमारे पूर्वज सृष्टि के संचालन के तरीके और विभिन्न लोकों और ऊर्जा की दुनिया के रहस्यों को जानते थे.

ध्यान आश्रम में 15 दिवसीय यज्ञ 30 से

इस बात को नोट करना आवश्यक है कि हिंदू संस्कृति एकमात्र ऐसी संस्कृति है, जो अन्य सभी संस्कृतियों से भी पहले की है और अभी भी सबसे अधिक प्रचलित धर्म है.इसके मंत्र और प्रथाएँ कोई बकवास नहीं हैं, बल्कि वर्तमान मनुष्य के लिए एक अत्यधिक उन्नत सभ्यता का उपहार हैं. यही कारण है, कि, आज तक यह संस्कृति जीवित है. यदि आप पितृ दोष के कारण परेशान हैं या अपने आसपास भूत-प्रेत की उपस्थिति महसूस करते हैं, तो मैं आपको वैदिक संस्कृति में निर्धारित प्रविधि की मदद लेने के लिए आमंत्रित करता हूं… श्राद्ध के संस्कार उनमें से एक है. पितरों की शांति हेतु ध्यान आश्रम यज्ञशाला में गुरु जी के सानिध्य में, 30 सितंबर, सूर्योदय के समय से 15 दिवसीय यज्ञ का आयोजन किया जाएगा, जिसकी पूर्णाहुति 14 अक्टूबर को संपन्न होगी. यज्ञ में भाग लेने और अपने पितरों के नाम पर गौदान करने के लिए www.dhyanfoundation.com पर संपर्क करें.

पितृलोक – योगी अश्विनी

ध्यान आश्रम

Share.
Exit mobile version