सिमडेगा: झारखंड की राजनीति इन दिनों गर्म है, जहां सत्ता और विपक्ष के बीच लगातार शह और मात का खेल जारी है. हेमंत सरकार द्वारा लॉन्च की गई मुख्यमंत्री मंईयां सम्मान योजना, जिसे राज्य सरकार का मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है, अब विवादों में घिर गई है. इस योजना पर सिमडेगा निवासी विष्णु साहू द्वारा हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई है, जिससे राज्य में आरोप–प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है.
मुख्यमंत्री मंईयां सम्मान योजना पर पीआईएल: क्या है मामला?
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने रक्षाबंधन के अवसर पर पाकुड़ से मुख्यमंत्री मंईयां सम्मान योजना को लॉन्च किया था. इस योजना के तहत राज्य की 21 से 50 साल की महिलाओं को हर महीने 1000 रुपये की आर्थिक सहायता दी जाती है, जिसे उनके बैंक खातों में सीधे जमा किया जाता है. योजना के तहत अब तक करीब 43 लाख लोगों ने पंजीकरण कराया है.
हालांकि, इस योजना के खिलाफ हाईकोर्ट में दायर पीआईएल में दावा किया गया है कि राज्य सरकार किसी व्यक्ति विशेष को सीधे पैसे नहीं दे सकती, क्योंकि यह जनकरों के टैक्स के पैसे होते हैं. याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि विधानसभा चुनाव से पहले मतदाताओं को प्रभावित करने के उद्देश्य से यह योजना लाई गई है.
पीआईएल पर प्रतिक्रिया: बयानबाजी का दौर शुरू
हालांकि, इस पीआईएल पर अब तक कोई फैसला नहीं आया है, लेकिन राजनीतिक बयानबाजी जोर पकड़ने लगी है. झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के नेता और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इस याचिका को बीजेपी की साजिश बताया है. मुख्यमंत्री ने सोशल मीडिया पर लिखा कि बीजेपी राज्य की मां–बहनों के हितों के खिलाफ है और मंईयां योजना से उनकी क्या परेशानी है.
सिमडेगा झामुमो के जिला अध्यक्ष अनिल कंडुलना ने भी इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने राज्य की महिलाओं के सम्मान और सहायता के लिए यह योजना शुरू की है. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि यह याचिका बीजेपी के इशारे पर दाखिल की गई है, जो मुख्यमंत्री के जनहित कार्यों को रोकने का प्रयास है.
मुख्यमंत्री मंईयां सम्मान योजना: क्या है इस योजना का महत्व?
मुख्यमंत्री मंईयां सम्मान योजना हेमंत सोरेन सरकार की एक प्रमुख योजना है, जिसमें राज्य की 21 से 50 साल की आर्थिक रूप से कमजोर महिलाओं को हर महीने 1000 रुपये की सहायता प्रदान की जाती है. इस योजना का लाभ केवल झारखंड के निवासियों को मिलेगा, और इसके लिए बैंक खाता, आधार कार्ड और मोबाइल नंबर का लिंक होना आवश्यक है. राज्य सरकार इस योजना को चुनावी मास्टर स्ट्रोक मान रही है, लेकिन हाईकोर्ट में दायर पीआईएल ने इस पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया है.