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खूंटी । खूंटी जिले के अड़की प्रखंड अंतर्गत चतुर्दिक वनाच्छादित पहाड़ी इलाके के बीच ऐतिहासिक गांव उलिहातु अवस्थित है। यह वही गांव है, जहां के रहने वाले बिरसा मुंडा ने आदिवासियों के साथ ब्रिटिश हुकूमत द्वारा किये जा रहे शोषण व अन्याय के खिलाफ उलगुलान छेड़ा था, जिससे अंग्रेज सरकार की नींद हराम हो गयी थी।
जिला प्रशसान द्वारा उलिहातु को एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की दिशा में कई योजनाएं क्रियान्वित हैं। उलिहातु जाने वाली पक्की सड़क पर एक भव्य बिरसा मुंडा द्वार निर्मित है। उलिहातु स्थित आवासीय विद्यालय परिसर में भगवान बिरसा मुंडा से संबंधित एक म्यूजियम स्थापित करने के लिए भवन का निर्माण कार्य आरंभ है।
यहां भगवान बिरसा मुंडा की एक भव्य व आकर्षक प्रतिमा स्थापित है। उनके आवासीय परिसर का सौंदर्यीकरण कर बिरसा ओड़ाः का निर्माण कराया गया है। बिरसा ओड़ाः में भगवान बिरसा मुंडा की आदमकद प्रतिमा स्थापित है। प्रत्येक साल बिरसा जयंती के अवसर पर 15 नवंबर को उलिहातु में भव्य समारोह का आयोजन किया जाता है, जहां हजारों की संख्या में खास व आम लोग आकर अमर शहीद वीर बिरसा को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं।
यहां आकर लोग गर्व महसूस करते हैं कि हम भगवान बिरसा मुंडा की भूमि पर आये हैं, जिन्होंने अपने अदम्य साहस एवं चमत्कारी नेतृत्व क्षमता से अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिये थे। वे एक ऐसे स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने आम आदमी की पहचान से ऊपर उठकर भगवान का संबोधन प्राप्त किया। अमर शहीद बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 ई को हुआ था। उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा मुरहू प्रखंड के बुरजू स्थित मिशन स्कूल से प्राप्त की। उनकी गिनती मेधावी छात्र के रूप में होती थी। इसके मद्येनजर आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें चाईबासा भेज दिया गया। यह वह समय था जब आदिवासियों के जीवन और समाज में भूचाल सा मचा हुआ था।
अंग्रजों द्वारा आदिवासियों को जमीन से बेदखल किया जा रहा था। आदिवासियों की सामाजिक व्यवस्था अस्त.व्यस्त होती जा रही थी। वीर बिरसा ने इसके विरुद्ध उलगुलान छेड़ दिया। अंततः अंग्रेज सरकार द्वारा वीर बिरसा मुंडा गिरफ्तार कर लिया। उन्हें रांची जेल ले जाया गयाए जहां नौ जून 1900 ई को बिरसा मुंडा का निधन हो गया।