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पतंजलि के भ्रामक विज्ञापन मामला : SC ने आदेश रखा सुरक्षित, हलफनामा दाखिल करने का समय दिया

नई दिल्ली : पतंजलि भ्रामक विज्ञापन मामले में अवमानना याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. सुप्रीम कोर्ट ने बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण को व्यक्तिगत पेशी से छूट दे दी है. सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि को हलफनामा दाखिल करने का समय भी दिया है. इस हलफनामे में पतंजलि को बताना होगा कि उसने भ्रामक विज्ञापनों और जिन दवाओं के लाइसेंस निलंबित किए गए हैं, उन्हें वापस लेने के लिए क्या कदम उठाए हैं।

भ्रामक विज्ञापनों पर सेलिब्रिटीज के खिलाफ भी होगी कार्रवाई

जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की बेंच ने 7 मई को इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि अगर लोगों को प्रभावित करने वाले किसी उत्पाद या सेवा का विज्ञापन भ्रामक पाया जाता है, तो सेलिब्रिटीज और सोशल मीडिया प्रभावशाली लोगों को भी समान रूप से जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए। आईएमए ने अपनी याचिका में कहा है कि पतंजलि ने कोविड टीकाकरण और एलोपैथी के खिलाफ नकारात्मक प्रचार किया है. याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि पतंजलि भ्रामक दावा कर देश को धोखा दे रही है कि उसकी दवाओं से कुछ बीमारियां ठीक हो जाएंगी, जबकि इसका कोई ठोस सबूत नहीं है. हालाँकि, कोर्ट के आदेश के बावजूद, पतंजलि द्वारा प्रिंट मीडिया में कथित भ्रामक विज्ञापन प्रकाशित किए गए थे। इस पर 3 जनवरी 2024 को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई करने के लिए बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण को नोटिस जारी किया था.

कोर्ट ने पतंजलि को अखबारों में माफीनामा छापने का निर्देश दिया था

अवमानना नोटिस जारी करने के बावजूद बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण की ओर से कोई जवाब नहीं आया. इस पर कोर्ट ने दोनों को सुनवाई के दौरान व्यक्तिगत रूप से पेश होने का निर्देश दिया. बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण ने माफ़ीनामा जारी किया, लेकिन कोर्ट ने माफ़ीनामा ख़ारिज कर दिया. 6 अप्रैल 2024 को कोर्ट ने माफीनामे को अखबारों में प्रकाशित करने का निर्देश दिया. 7 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने मूल माफी की जगह ई-फाइलिंग को लेकर पतंजलि को फटकार भी लगाई थी. इस मामले पर 23 अप्रैल को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा था कि आईएमए के उन डॉक्टरों पर भी विचार करने को कहा था, जो अक्सर महंगी और अनावश्यक दवाएं लिखते हैं. कोर्ट ने कहा था कि अगर आप किसी की तरफ एक उंगली उठाएंगे तो चार और उंगलियां आपकी तरफ उठेंगी. आईएमए अध्यक्ष डॉ. आरवी अशोकन ने सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी को दुर्भाग्यपूर्ण बताया था. इस पर कोर्ट ने आपत्ति जताते हुए उन्हें नोटिस जारी कर जवाब मांगा है.

 

 

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