JoharLive Team
पलामू : ज़िला मुख्यालय मेदिनीनगर से महज 15 किलोमीटर दूर स्थित गांव ‘चुकरू’ जहां एक एक कर लोग मौत के मुंह में समाते जा रहे हैं। फ्लोरोसिस बीमारी की चपेट में आकर अब तक 50 मौतें हो चुकी है। चुकरु गांव में 20-25 घर है जिनमे करीब 150 लोग रहते हैं। यहां पाल, चेरो व खरवार जाति के लोग रहते हैं। कई लोग यहां से पलायन कर चुके हैं। चुकरू गांव में जो पानी का प्रयोग करते हैं वह पीने लायक नहीं है। फ्लोराइड की मात्रा अत्याधिक पांच प्रतिशत तक है जबकि दो से अधिक होने पर यह जानलेवा साबित होता है।
- विगत 30 वर्षों से फ्लोराइड युक्त पानी यहाँ के लोगों पर कहर बरपा रहा है
चुकरू गांव के लोगे विगत 30 वर्षों से फ्लोराइड युक्त पानी पीने को मजबूर हैं और काल के गाल में समाते जा रहे हैं। विडंबना इस बात का है कि इस गांव में स्वच्छ जल मुहैया कराने के सवाल का ज़िले के संबंधित अधिकारियों के पास कोई जवाब नहीं होता। करीब 10 वर्ष पहले चांपानलों में पानी फिल्टर कराने लिए मशीन लगाया गया था, पर आज हस्र यह है कि सभी चांपानल पर लगी मशीनें बेकार पड़ी हैं। गावं में ग्रामीण जलापूर्ति योजना की भी शुरुआत की गई थी मगर वह भी पूर्णतया असफल साबित हुआ। ज़िले के संबंधित अधिकारियों से इस बाबत पूछे जाने पर कुछ भी जवाब उनके पास नहीं होता। जब कभी मामला जोर पकड़ता है स्वछता विभाग के अधिकारी गांव के समीप नदी से पाइपलाइन से पानी पहुंचाने का प्रयास करते हैं लेकिन बावजूद पानी नहीं पहुंचाता। क्योंकि की नदी में बना कुआं बालू से भरा पड़ा हुआ है, उसकी सफाई और पाइप लाइन की सफाई नहीं की जाती है। वहीं गांव में लगे टंकी खराब हो चुका है।
- गांव के लागों को दूसरे स्थान शिफट करना ही एक मात्र समाधान:सिविल सर्जन
पलामू के तत्कालीन सिविल सर्जन डॉ आरपी सिन्हा ने बताया की 2002 से 2009 तक के अपने कार्यकाल के दौरान चुकरु समस्या पर वर्ष 2005 में जारी अपनी रिपोर्ट में दो बातें का जिक्र किया था। पहला तत्काल राहत के लिए दूसरा दूसरे जगह से पानी पहुंचाने की व्यवस्या करना और चुकरु गांव से सभी लोगों को दूसरे स्थान पर शिफट करना ही एक मात्र उपाय हैं।
- गांव में प्रवेश करते ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं
चारपाई पर लेटे कर अपनी मौत का इंतजार करते लोगों की भयावह स्थिति को देख रोंगटे खडे हा जाते हैं । इस गांव में प्रवेश करते ही अपको चारों तरफ मातमी सन्नाटा छाया हुआ है। आज स्थिति यह है कि यहां के अधिकांश लोग चलने से लाचार हो चुके हैं। बैठने पर बिना किसी सहारे का खड़ा हो पाना मुश्किल है। गांव बुर्जुग सुदामा पाल इसी का उदाहरण इन दिनों चारपाई में ही जीवन गुजार रहे हैं। फ्लोराइडयुक्त पानी का असर सबसे पहले पीने वाले की दातों पर ही पड़ता है, फिर धीरे-धीरे शरीर को जकड़ना शुरू कर देता है। धीरे धीरे पूरे शरीर को विकलांग बना देता है। लगभग सभी लोगों की हालात बदतर हो चली है। गांव वालों का कहना है कि अगर पानी जलापूर्ति योजना के तहत हमें गांव के बाहर से पेयजल आपू्र्ती की व्यवस्था हो जाए तो उनका जीवन बच सकता है ।
- पांच साल में एक बार चुनाव के समय विधायक को इस गांव की याद आती है
गांव के मुखिया सरिता देवी का कहना है कि यहाँ के विधायक का कोई ध्यान नहीं है। पांच साल में एक बार चुनाव के समय विधायक को इस गांव की याद आती है इस गांव के लोगों को पानी पिलाने की बात कर सिर्फ वोट लेकर चले जाते हैं। पूर्व और वर्तमान दोनों विधायकों की यही परम्परा रही है। जीतने और विधायक बनने के बाद एक बार भी इस गांव का हाल चाल जानने नहीं आती हैं।
- चकरू गांव में पीने के पानी का मामला सदन में उठाया था:चौरसिया
हिन्दुस्थान समाचार ने जब उनसे जानना चाहा कि आखिर चकरू के निवासीयों को आज तक पीने का पानी क्यों नहीं मिल पाया । डालटनगंज विधानसभा के वर्तमान विधायक आलोक चौरसिया ने कहा कि उन्हें पता है कि चुकरु के पांच पंचायत में 30 प्रतिशत से ऊपर पानी में फ्लोराइड की मात्रा अधिक है। जब वे रघुवर सरकार में थे वर्ष 2016 में उन्होंने आवाज़ उठाई थी। सरकार की ओर से कार्य शुरू भी किया गया लेकिन इस गांव का इलाका पूरी तरह से ड्राई जोन होने से कार्य में गति नहीं आ सकी।
वहीं डालटनगंज विधानसभा के पूर्व विधायक व मंत्री के एन त्रिपाठी ने कहा कि वे चुकरु गांव पर वर्ष 2012-13 में उन्होंने विधानसभा में सवाल उठाया था। उस समय वे सरकार में ग्रामीण विकास मंत्री थे। चुकरु गांव के चापानलों में मशीन लगा ताकि लोग स्वछ पानी पी सकें। वहाँ पानी का टंकी भी बना। लेकिन बाद के जनप्रतिनिधियों ने इस ओर रख-रखाव पर ध्यान नहीं दिया जिससे वहाँ पर व्यवस्थाएं चरमरा गयी।
बहरहाल नेताओं का आरोप प्रत्यारोप तो कभी खत्म नहीं हो सकता लेकिन जल की आस में जीवन खो रहे चकरू के गांव का दर्द अगर यहां के जनप्रतिनिधि और प्रशासन तक पहुंच जाए तो सैकडों लोगों को मौत के मूंह में जाने से बचाया जा सकता है ।