JoharLive Team

पाकुड़ । एक बार फिर से चुनावी डंक बज चुका है। राजनीतिक पार्टियों ही नहीं आम जनता भी काफी उधेड़बुन में है कि वह किसे वोट दें। ऐसा नहीं कह सकते कि पाकुड़ में विकास नहीं हुआ है, लेकिन अबतक किसी भी विधायक ने अपने स्तर से क्षेत्र में विकास के लिए ऐसा कुछ नहीं है, जिसे उपलब्धि के तौर पर गिना जा सके। पाकुड़ ने हाजी ऐनुल हक, आलमगीर आलम, अकील अख्तर और बेनी प्रसाद गुप्ता जैसे कद्दावर विधायकों को दिया है, लेकिन इन लोगों के खाते में भी विकास के नाम पर कोई खास उपलब्धि गिनाई नहीं जा सकती।

उल्लेखनीय है कि पाकुड़ अल्पसंख्यक बहुल विधानसभा क्षेत्र है। यहां के अल्पसंख्यक गरीब एवं मजदूर तबके के हैं। इनके लिए रोजगार सबसे बड़ी आवश्यकता है। बिजली,पानी,सड़क,स्वास्थ्य एवं शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं को अगर छोड़ भी दें तो रोजगार पाकुड़ विधानसभा के लिए सबसे बड़ी आवश्यकता है। साहेबगंज से लेकर पाकुड़ जिला तक बीड़ी व पत्थर उद्योगों का जाल फैला हुआ था। इस क्षेत्र में पहले दर्जनों बीड़ी कंपनियां थीं। सरकारी नियमों एवं गलत नीतियों ने उन बीड़ी कंपनियों को लील लिया। स्वाभाविक रूप से यहां के मज़दूरों के हाथों से घरेलू या कुटीर उद्योग के रूप में प्राप्त बीड़ी बनाने का रोजगार भी फिसल गया। दूसरा सबसे बड़ा पत्थर उद्योग भी गलत सरकारी नीतियों व लालफीताशाही के पंजे में अंतिम सांसें गिन रहा है। इस क्षेत्र में भी बेरोजगारी अपना पांव पसारने लगा है। ऐसी स्थिति में मतदाता उधेड़बुन में हैं कि वो किसे अपना प्रतिनिधि चुनें।

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