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पाकिस्तानी हिंदू शरणार्थी बच्चे स्कूल में दाखिले के लिए भटक रहे हैं, पढ़ें पूरी रिपोर्ट

JoharLive Desk

नई दिल्ली : पाकिस्तान से भागकर भारत आए हिंदू शरणार्थियों की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। दक्षिणी दिल्ली के एक स्कूल ने तीन पाकिस्तानी भाई-बहनों को स्कूल से यह कहकर निकाल दिया है कि उनकी उम्र नवीं कक्षा में पढ़ने के लिहाज से बहुत ज्यादा है। अब बच्चों के माता-पिता उनका एडमिशन कराने के लिए कभी स्कूल तो कभी स्थानीय विधायक के घर के चक्कर लगा रहे हैं, लेकिन अब तक उन्हें दाखिला नहीं मिल पाया है। बच्चों के अभिभावकों ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को पत्र लिखकर उनका नामांकन कराने की अपील की है।
दरअसल, पाकिस्तान में हिंदुओं का उत्पीड़न बहुत ज्यादा बढ़ जाने के बाद संजिनी बाई (16 वर्ष), रवि कुमार (17 वर्ष) और मूना कुमारी (18 वर्ष) इसी साल मई 2019 में अपने परिवार के साथ भारत आए थे। वहां से आने के बाद जुलाई महीने में उन्होंने दिल्ली के शिक्षा विभाग में अपना रजिस्ट्रेशन कराया था। संजिनी और मूना कुमार के पास पाकिस्तान के एक स्कूल से आठवीं कक्षा में पास करने का प्रमाण पत्र भी है, जबकि रवि कुमार के पास भी दसवीं की परीक्षा देने का प्रमाण पत्र है।
तीनों ही बच्चों ने नवीं कक्षा में पढ़ने के लिए अनुमति मांगी थी। रजिस्ट्रेशन के बाद बच्चों को स्कूल में बैठने की अनुमति मिल गई थी, लेकिन गत 14 सितंबर को स्कूल ने उन्हें यह कहकर निकाल दिया कि उनकी उम्र नवीं कक्षा में पढ़ने के लिहाज से बहुत ज्यादा है, जिसके बाद से ही बच्चों का संघर्ष जारी है। बच्चों के परिवारवालों ने अमर उजाला को बताया कि उनके कई प्रयास के बाद भी स्कूल बच्चों का दाखिला लेने को तैयार नहीं है।
बच्चों के वकील अशोक अग्रवाल ने बताया कि शिक्षा बच्चों का मूल अधिकार है। किसी भी बात को आधार बनाकर उन्हें शिक्षा से वंचित नहीं किया जा सकता। इस मामले में बच्चों के पास उनकी पिछली शिक्षा के प्रमाण पत्र भी हैं। उन्होंने कहा कि अगर स्कूल बच्चों का दाखिला देने से इनकार करता है तो वे कोर्ट की शरण लेने के लिए बाध्य होंगे।
इसी प्रकार का एक मामला सितंबर 2016 में भी सामने आया था। उस समय पाकिस्तानी शरणार्थी बच्ची मधु अपने परिवार के साथ दिल्ली आ गई थी। पाकिस्तान से भागने के कारण मधु के पास शिक्षा का पिछला कोई रिकॉर्ड नहीं था। प्रमाण पत्र न होने के कारण कोई भी स्कूल उसका दाखिला लेने को तैयार नहीं था। इसके बाद यह मामला तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के सामने आया था। इसके बाद उन्होंने मधु का एडमिशन कराने के लिए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को फोन किया था। केजरीवाल की दखल के बाद मधु का नाम छतरपुर के उसी स्कूल में लिखा गया, जहां आज ये तीन बच्चे नाम लिखाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। मधु इस समय उसी स्कूल में बारहवीं की पढ़ाई कर रही है।

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