Joharlive Team

रांची। पेड़-पौधे, पहाड़ और जमीन में बाहर की दुनिया के लोगों को पैसा नजर आता है, लेकिन यह आदिवासी समाज के लिए ईश्वरीय रूप है। सदियों से आदिवासी समाज के लोग इसकी पूजा करते आ रहे हैं और आज भी उनकी यह आस्था कम नहीं हुई है। कुछ इसी तरह की बातें झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने हार्वर्ड इंडिया कॉन्फ्रेंस में कही हैं। उन्होंने केंद्र सरकार से आग्रह किया कि आगामी जनगणना में आदिवासी समूह के लिए अलग कॉलम होना चाहिए। मुख्यमंत्री ने नीति आयोग गवर्निंग काउंसिंल की बैठक में पीएम मोदी के सामने सरना आदिवासी धर्म कोड की मांग से संबंधित प्रस्ताव का भी जिक्र किया।

शनिवार को प्रधानमंत्री के साथ वर्चुअल बैठक में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने केंद्र सरकार से कहा कि आदिवासी समाज एक ऐसा समाज है, जिसकी सभ्यता, संस्कृति, व्यवस्था बिल्कुल अलग है। आदिवासियों को लेकर जनगणना में अपनी जगह स्थापित करने के लिए वर्षों से मांग रखी जा रही है। झारखंड विधानसभा से पारित कर राज्य सरना आदिवासी धर्म कोड की मांग से संबंधित प्रस्ताव भेजा है। उम्मीद करते हैं कि भारत सरकार इस पर सहानुभूति पूर्वक विचार करेगी।

सन् 1871 से 1951 तक आदिवासियों के लिए अलग धर्म का कॉलम था। हालांकि, संविधान सभा ने भारत के संविधान से आदिवासी शब्द ही हटा दिया। उस समय संविधान सभा में हुई बहस के दौरान तत्कालीन सांसद जयपाल सिंह मुंडा ने आदिवासी शब्द की जगह अनुसूचित जनजाति शब्द लिखे जाने का जोरदार विरोध किया था। इस बार जनगणना में आदिवासियों के लिए अन्य का कॉलम भी हटा दिया गया है। उन्हें हिन्दू, ईसाई, मुस्लिम, सिख और जैन, पारसी में से किसी एक चुनना होगा। इसी कारण सरना धर्म कोड की मांग तेज हो गई है।

झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और बिहार में आदिवासी समुदाय का बड़ा तबका अपने आपको सरना धर्म के अनुयायी के तौर पर मानता है। वो प्रकृति की प्रार्थना करते हैं और उनका विश्वास ‘जल, जंगल, जमीन’ है। ये वन क्षेत्रों की रक्षा करने में विश्वास करते हुए पेड़ों और पहाड़ियों की प्रार्थना करते हैं। झारखंड में 32 जनजातीय समूह हैं, जिसमें आठ विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों में है। इनमें से कुछ हिन्दू धर्म का पालन भी करते हैं, तो कुछ ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गए हैं। माना जाता है कि आदिवासी समुदाय के ईसाई समुदाय में परिवर्तित होने के बाद वह एसटी आरक्षण से वंचित हो जाते हैं, ऐसे में वे सरना धर्म की मांग करके अपने आपको आरक्षण के लाभ से वंचित नहीं होना देना चाहते हैं।

झारखंड में निवास करने वाले 32 तरह के आदिवासी समाज के लोग अलग-अलग नाम से जाने जाते हैं और उनका धर्म भी अलग है। सरना धर्म में पेड़, पौधे और पहाड़ समेत सभी प्राकृतिक संपदा की पूजा की जाती है। इस समाज की राज्य में एक बड़ी आबादी होने के कारण झारखंड की राजनीतिक, भौगोलिक, सामाजिक और आर्थिक परिदृश्य में इनका प्रमुख स्थान है। वहीं हेमंत सोरेन के नेतृत्व में झारखंड में गठबंधन की सरकार बनने के बाद अब जनगणना में आदिवासी समूह के लिए अलग से कॉलम की व्यवस्था की मांग जोर पकड़ने लगी है। शनिवार देर रात हार्वर्ड इंडिया कॉन्फ्रेंस में भी इस बात को रखा। हेमंत सोरेन का दावा है कि आदिवासी न कभी हिन्दू थे और न अभी हिन्दू हैं, इनका रीति-रिवाज अलग है और ये प्रकृति पूजक हैं।

हार्वर्ड इंडिया कॉन्फ्रेंस में हेमंत सोरेन ने कहा कि आदिवासियों के लिए पॉलिसी में बात तो की जाती है, लेकिन कार्य इसके विपरीत है। देश में ट्राइबल काउंसिल, आदिवासी मंत्रालय है। संविधान के पांचवीं और छठी अनुसूची में अधिकार प्राप्त है, लेकिन इसका लाभ आदिवासियों को नहीं मिल रहा है। यही वजह है कि राज्य सरकार ने केंद्र सरकार से आग्रह किया कि आगामी जनगणना में आदिवासी समूह के लिए अलग कॉलम होना चाहिए। जिससे वे अपनी परंपरा और संस्कृति को संरक्षित कर आगे बढ़ सकें।

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