चित्रकूट : शक्ति की आराधना का महापर्व नवरात्रि शत्रु एवं बाधाओं से मुक्ति दिलाने वाला है. महाअष्टमी या दुर्गाष्टमी पर्व पर मां गौरी रूप की उपासना की जाती है. वहीं निशीथ (मध्य रात्रि) बेला में देवी महाकाली की उपासना, साधना की जाती है.
श्री लोकमंगल अनुसंधान संस्थान, चित्रकूटधाम (उ.प्र.) के ज्योतिषाचार्य आचार्य राजेश महाराज ने बताया कि इस वर्ष सूर्योदय काल में अष्टमी तिथि 13 अक्टूबर को रात्रि 11.42 मिनट तक होने से महाष्टमी या दुर्गाष्टमी के व्रत को आज के ही दिन भक्तगण करेंगे. जैसा कि ज्योतिष ग्रंथ धर्मसिन्धु में वर्णित है-
‘अथ महाष्टमीघटिकामात्राप्यौवयिकी नवमी युता ग्राह्याः।
सप्तमी स्वल्पयुता सर्वथा त्याज्या।।
यदा तु पूर्वत्र सप्तमीयुता परत्रोदये नास्ति घटिका न्यूना वा।
वर्तते तदापूर्वा सप्तमी विद्धापि ग्राह्याः’
पूजन विधान
नित्यक्रिया आदि से निवत्त हो आचमन एवं पवित्रीकरण कर अष्टमी व्रत का संकल्प लें. धूप, दीप, चन्दन, गंगाजल, पुष्प, अक्षत, ऋतु फल एवं नैवेद्य से मां भगवती महागौरी का पूजन करें. जीवन में सुख, शान्ति, समृद्धि एवं परम वैभव की प्राप्ति हेतु यह व्रत किया जाता है.
ध्यान मंत्र- ‘श्वेत वृषे समारूढ़, श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभम् दद्यात, महादेव प्रमोद दाद।।’
आचार्य राजेश महाराज ने बताया कि शास्त्रीय मान्यता है कि नवरात्रि के आठवें दिन 13 अक्टूबर को अन्नपूर्ण के स्वरूप महागौरी की पूजा व अर्चना की जायेगी. अपने प्रकटकाल में यह देवी आठ वर्ष की थीं. इसके चलते नवरात्रि की अष्टमी को ही महागौरी का पूजन विधान होता है. आज के दिन 09 कन्याओं का पूजन करें तथा उन्हें भोजन व उपहार व सम्मान देने से मनोकामना पूर्ण होती है.
पूजन के विशिष्ट मुहूर्त
महा साधना हेतु संधि पूजन मुहूर्त
आचार्य राजेश महाराज के अनुसार 13 अक्टूबर 2021 की रात्रि 11.42 बजे तक अष्टमी तिथि रहेगी एवं 11.42 के उपरान्त अगले दिन तक नवमीं तिथि रहेगी. अष्टमी की समाप्ति का 24 मिनट तथा नवमी तिथि के आरम्भ का 24 मिनट ज्योतिष शास्त्र में अष्टमी व नवमी का सन्धिकाल माना गया है. अतः अष्टमी तिथि की रात्रि 11.18 बजे से 12.06 बजे तक संधिकाल (निसीथ पूजा) पूजन अर्चन होगा. इसी संधिकाल में मां दुर्गा ने प्रकट हो कर चण्ड मुण्ड नामक दो असुरों का वध किया था.
सन्धि पूजा हेतु पूर्व दिशा की ओर मुख करके लाल ऊनी आसन, एक गिलास जल, आचमन पात्र, 108 गुलाब, लाल कनेर पुष्प तथा कर्पूर, लौंग, अक्षत, रोली, घी का दीपक, ऋतु फल व मिष्ठान आदि से महागौरी देवी का पूजन अर्चन कर श्री दुर्गा सप्तसती के देवी सूक्तम् का पाठ करें. श्री दुर्गा अष्टोत्तरशतनाम का पाठ करें ततदुपरान्त गुरु प्रदत्त मंत्र या नवार्ण मंत्र का जप करें.
मनोरथ सिद्धि हेतु जप मंत्र
नमो सर्वार्थ-साधिनी स्वाहा
इस मंत्र का 1000 बार जप कर 108 मंत्रों से संधिकाल में हवन करें. मां भगवती की कृपा अवश्य प्राप्त होगी.
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै
इस मंत्र को 1008 बार जप कर द्राक्षा फल (किशमिश) अथवा गुलाब पुष्प से 108 बार हवन करने से देवी प्रशन्न हो सम्पूर्ण विपत्तियों का नाश करती हैं,
ह्रीं श्रीं श्रीं श्रीं श्रीं श्रीं श्रीं लक्ष्मी, ममगृहे धनपुरे, चिन्ता दूरे दूरे स्वाहा।
इस मंत्र को महाष्टमी की रात्रि 12.00 बजे से आसन में विराजकर पूर्वाभिमुख हो 324 बार जप करें तथा अगले दिन 09 कन्याओं को भोजन कराकर लाल वस्त्र अर्पित करें धन धान्य की उपलब्धि अवश्य होगी.
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