रांची। त्रिवेणी योग में मनाई जाएगी बसंत पंचमी। सिद्ध, साध्य और रवि योग के संगम की वजह से ये बसंत पंचमी शिक्षा से संबंधित महत्वपूर्ण फैसले लेने और शिक्षा शुरू करने के लिए अत्यंत शुभ मानी जा रही है. ज्ञान विज्ञान की सिद्धिदात्री माँ शारदा की आराधना माघ शुक्ल पक्ष पंचमी को की जाती है।
माँ सरस्वती सनातन धर्म की वैदिक,पौराणिक, सतोगुण महाशक्ति एवं प्रमुख त्रिदेवियों मे से एक है।प्रसिद्ध ज्योतिष आचार्य प्रणव मिश्रा ने बताया कि धर्म शास्त्रों के अनुसार देवी सरस्वती को प्रकृति ,शक्ति एवं ब्रह्मज्ञान-विद्या आदि की अधिष्ठात्री देवी माना गया है। माघ शुक्ल पंचमी जिसे श्रीपंचमी या बसंतपंचमी के नाम से जाना जाता है इस दिन माता सरस्वती की विशेष रूप से पूजा अर्चना की जाती है। इस बार सरस्वती पूजा 5 फरवरी दिन शनिवार को बसंत पंचमी होगा। समस्त पाप, दुःख, कष्ट, अज्ञानता को दूर करने वाली माता सरस्वती को बीना वाणी, शारदा, वागेश्वरी , वेदमाता, शुक्लवर्ण,शुक्लाम्बरा, वीणा-पुस्तक-धारिणी तथा श्वेतपद्मासना कई नामों से संबोधित किया गया है।
माता का स्वरुप – माँ सरस्वती के मुस्कान से उल्लास तेज मुख है। श्वेत वस्त्र धारण की हुई है। दो हाथों में वीणा पकड़े हुए है जो कलात्मकता का प्रतीक है और एक हाँथ में वेदग्रंथ और दूसरे हाँथ में स्फटीकमाला है जिससे ज्ञान और ईशनिष्ठा-सात्त्विकता का बोध होता है।उनका वाहन हंसराज सौन्दर्य एवं मधुर स्वर का प्रतीक है।
सरस्वती मंत्र :
इन मंत्र का जाप करने से माता सरस्वती जल्द प्रसन्न होती हैं और मनोवांछित फल प्रदान करती हैं।
या कुंदेंदु तुषार हार धवला या शुभ्र वृस्तावता।
या वीणा वर दण्ड मंडित करा या श्वेत पद्मसना।।
या ब्रह्माच्युत्त शंकर: प्रभृतिर्भि देवै सदा वन्दिता।
सा माम पातु सरस्वती भगवती नि:शेष जाड्या पहा।।1।।
सरस्वती महाभागे विद्या कमल लोचन ।
विश्वरूपी विषालाक्षी विद्या देहू नमोस्तुते ।।
पूजन विधि – इस दिन सुबह नित्य कर्म से निवृत हो शुद्ध वस्त्र धारण कर विद्या की देवी मां सरस्वती को विधि पुर्वक हल्दी, कुमकुम, रोली, सिंदूर, चन्दन, पुष्प, अक्षत , धुप-दीप से पूजन करना चाहिए। फिर वाद्य यंत्र व किताबों को मां के समक्ष रखकर पूजा-अर्चना करनी चाहिए उनकी वंदना कर माँ सरस्वती से अपने अच्छे ज्ञान-बुद्धि, सुख- संवृद्धि की कामना करनी चाहिए।
आचार्य प्रणव मिश्रा
आचार्यकुलम, अरगोड़ा राँची
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